व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं
नए रास्ते
ट्रेन स्टेशन पर आकर रुकी तो दोनों अपने स्टेशन पर गाड़ी से नीचे उतर गए।
एक पांव वाला पंगू और एक हाथ वाला टिंडू। दोनो को सब इसी नाम से जानते थे।
'यार पंगू किसी के सामने हाथ फैला कर भीख मांगना अच्छा तो नहीं लगता' - टिंडू ने उदास मन से कहा।
पंगू को उसकी बात जंची। 'परन्तु कालू से पीछा कैसे छुटे, जिसने हमारे हाथ पांव काटकर भिखारी बना दिया' - उसने अपने मन की शंका प्रकट की। साथ साथ उसकी आँखो में राजू का दर्द भी उभर आया जब उसने भागने की कोशिश की थी तो कालू ने उसे कितना मारा था और तीन दिन तक भूखा-प्यासा, अंधेरी कोठरी में बंद रखा था।
'चिंता मत कर, किसी दूसरे शहर में चले जाएंगे।'
'वहां जाकर काम क्या करेंगे'?
'हम दोनों कुछ तो पढे-लिखे हैं। कोई न कोई काम तो ढूंढ ही लेगें दृढ़ आत्मविश्वास से टिंडू ने कहा।
दोनों को स्टेशन पर खड़ी गाड़ी की सीटी सुनाई दी। एक दूसरे ने आँखों की भाषा को समझा और तेज कदमों के साथ ट्रेन में चढ़ गए।
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