अब हिप्पी ऐसी लड़कियों के साथ रह रहा है जिससे वह विवाहित नहीं है। हिप्पी
लड़कियां ऐसे युवकों के साथ रह रही हैं जिनसे उनका कोई विवाह नहीं हुआ।
क्योंकि हिप्पी कहता है कि विवाह जो है, वह 'लीगलाइज्ड प्रॉस्टीट्यूशन' है।
समाज के द्वारा आदेशित, लाइसेंस्ट वेश्यागिरी है।
समाज लाइसेंस देता है दो आदमियों के लिए कि अब हम तुम्हारे बीच में बाधा नहीं
बनेंगे। लाइसेंस देने की कई तरकीबें है। कहीं सात चक्कर लगा कर लाइसेंस देता
है, कहीं माला पहनवाकर देता है, कहीं दफ्तर में रजिस्टर पर दस्तखत करवाकर
देता है। वे विधियां तो गैर-महत्वपूर्ण, नॉन-एसेन्शियल हैं। महत्त्वपूर्ण यह
है कि समाज एक लाइसेंस देता है कि अब इन दो आदमियों के बीच जो यौन संबंध
होंगे, उनमें हम बाधा न देंगे।
हिप्पी यह कहता है कि मेरा प्रेम मेरी निजी बात है। और जिससे मेरा प्रेम है
यह दो व्यक्तियों की बात है, इसमें हमें समाज से स्वीकृति का सवाल कहा है;
इसमें पूरे समाज का संबंध कहां है? यह पूरा समाज हमारे प्रेम तक पर भी काबू
रखने की कोशिश क्यों करता है? यह हमें स्वतंत्र व्यक्ति बिस्कुल नहीं रहने
देना चाहता। प्रेम पर भी इसका काबू होना चाहिए।
लेकिन वह तकलीफें झेल रहा है। क्योंकि बच्चा हो जाएगा हिप्पी लड़की को, स्कूल
में भरती करने जाएगी तो वहां शिक्षक पूछता है, इसके बाप का नाम? तो हिप्पी
लड़की लिखवाती है कि नहीं, इसका कोई बाप नहीं है, मां ही है। बड़ी तकलीफ है,
जिस गांव में एक लड़की यह कह सकती हो कि इसका बाप नहीं है, सिर्फ मां है। अगर
आप बिना बाप के नाम लिख सकते हों तो ठीक।
मुझे उपनिषद की एक कहानी याद आती है, सत्यकाम जाबाल का। वक्त बदल जाता है
इसलिए हम कहानी को बढ़िया रूप दे देते हैं। सत्यकाम गुरु के
आश्रम गया तो पूछा, तेरे पिता का नाम क्या है? तो वह वापस लौटा। उसने अपनी
मां को कहा कि मेरे पिता का नाम क्या है? तो उसकी मां ने कहा जब मैं युवा थी
और तेरा जन्म हुआ तो बहुत लोगों की मैं सेवा करती थी। कौन तेरा पिता हैं,
मुझे पता नहीं। तो तू जा वापस। अपने गुरु को कह देना सत्यकाम मेरा नाम है,
जाबाल मेरी मां का नाम है, इसलिए सत्यकाम जाबाल आप मुझे कह सकते हैं। और मेरी
मां ने कहा है कि जब वह युवा थी तो बहुत लोगो के संपर्क में आयी। पता नहीं
पिता कौन है।
सत्यकाम वापस गया उसने गुरु से कहा कि मेरी मां ने कहा है कि जब मैं युवा थी,
तब बहुत लोगों के संपर्क में आयी, पता नहीं कि तेरा पिता कौन है। इतनी ही
उसने कहा कि मेरा नाम सत्यकाम है और मां का नाम जाबाल है इसलिए आप मुझ
सत्यकाम जाबाल कह सकते हैं।
मैंने तो सुना है, कोई कह रहा था कि जबलपुर जाबाल के नाम पर ही निर्मित है।
पता नहीं मुझे, मुझे कोई कह रहा था, हो सकता है।
लेकिन गुरु ने कहा कि तब तुझे मैं ले लेता हूं, क्योंकि मैं मान लेता हूं कि
तू निश्चित ही ब्राह्मण है, क्योंकि इतना सत्य सिर्फ ब्राह्मण ही बोल सकता
है। इतना सत्य तेरी मां ने बोला कि मुझे पता नहीं बहुत लोगों के संपर्क में
आयी, पता नहीं कौन पिता था। इतना सत्य सिर्फ ब्राह्मण ही बोल सकता है।
हिप्पी एक अर्थ में ब्राह्मण है। इस अर्थ में बाह्मण है कि जीवन का जो सत्य
है, जैसा है, वह वैसा बोल रहा है, कह रहा है! ये तीन बातें।
और चौथी अंतिम बात। फिर मेरी दृष्टि क्या है हिप्पी के बाबत वह मैं आपको
कहूं। चौथी बात।
मनुष्य ने इतनी संपति, इतनी सुविधार इतनी सामग्री पैदा की है, लेकिन किसी
गहरे अर्थ में मनुष्य भीतर दरिद्र हो गया है, चेतना संकुचित हो गयी है।
तो हिप्पी का चौथा सूत्र है, चेतना का विस्तार एक्सपांशन ऑफ कांशसनेस। वह यह
कह रहा है कि तुम अपनी चेतना को कैसे फैलाए। तो चेतना फैलाने के लिए वह सब
तरह के प्रयोग कर रहा है। गांजा, अफीम भाग, हशीश, एल एस डी. मेस्केलिन,
मारीजुआना, योग-ध्यान, वह यह सब कर रहा है कि चेतना कैसे फैले, संकुचित चेतना
का विस्तार कैसे उपलब्ध हो जाए। तो केमिकल ड्रग्स का भी उपयोग कर रहा है। एल
एस डो, मेस्केलीन, जिनके द्वारा थोड़ी देर के लिए चित्त नए लोक में प्रवेश कर
जाता है।
कानून विरोध में है, क्योंकि कानून तो हर नई चीज के विरोध में है क्योंकि
कानून तो बनता है कभी और युग बदल जाता है। कानून तो विरोध में है। कानून तो
एल एस डी को पाप मानता है। मैं नहीं समझ पा रहा हूँ। एल एस डी और मेस्केलीन
में बड़ी संभावनाएं हैं। इस बात की बहुत संभावनाएं हैं कि ये दोनों चीजें
मनुष्य की चेतना को नए दर्शन कराने में सफल रूप से प्रयुक्त की जा सकती हैं।
ऐसा मैं नहीं मानता हूं कि इनके द्वारा कोई समाधि को उपलब्ध हो जाएगा, लेकिन
समाधि की एक झलक मिल सकती है। और झलक मिल जाए तो समाधि की प्यास पैदा हो जाती
है। आज तो पश्चिम में योग और ध्यान के लिए इतना आकर्षण है, उसके बहुत गहरे
में एल एस डी है। लाखों लोग एल एस डी लेकर देख रहे हैं।
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