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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 97
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


हां, कुछ लोग-कुछ सौभाग्यशाली लोग, मरते क्षण वहां पहुच जाते है, जहां जीवन का आकाश है, जहां जीवन का प्रवास है, जहां सत्य है, जहां परमात्मा का मंदिर है। लेकिन, वहां वे ही लोग पहुंचते हैं जो किनारे से, खूंटे से जंजीर खोलने की याद रखते हैं।
इन चार दिनों में कुछ जंजीरों की मैंने बात की है। पहले दिन मैंने कहा शाखों और सिद्धांतो की जंजीरे बड़ी गहरी हैं। और जो शास्त्रो और सिद्धांतों से बंधा रह जाता है, वह कभी जीवन के सागर में यात्रा नहीं कर पाता है।
जीवन का सागर है-अज्ञात; और, सिद्धात और शास्त्र सब है-ज्ञात।
ज्ञात से अज्ञात की तरफ जाने का कोई भी मार्ग नहीं है, सिवाय ज्ञात को छोड़ने के। जो भी हम जानते हैं वह ज्ञात है और जो जीवन है, वह अनजान है, अननोन है; वह परिचित नहीं है। जो हम जानते हैं उसके द्वारा उसको नहीं पहचाना जा सकता है, जो हम नही जानते हैं। जो ज्ञात है, जो नोन है, उससे अज्ञात को, अननोन को जानने का कोई द्वार नहीं है; सिवाय इसके कि ज्ञात को छोड़ दिया जाए। और ज्ञात को छोड़ते ही अज्ञात के द्वार खुल जाते हैं।

पहले दिन, पहले में मैंने यही कहा : छोड़ें शास्त्र को, छोड़े शब्द को, क्योंकि सब शब्द उधार; बारोड हैं; बासे हैं मरे हुए हैं। और सब शास्त्र पराए हैं। कोई कृष्ण का है, कोई राम का कोई बुद्ध का, कोई जीसस का, और कोई
मुहम्मद का! जो उन्होंने कहा है, वह उनके लिए सत्य रहा होगा। निश्चित ही, जो उन्होंने कहा है, उसे उन्होंने जाना होगा। लेकिन उनका ज्ञान किसी और दूसरे का ज्ञान नहीं बनता है, और नहीं बन सकता है। कृष्ण जो जानते हैं जानते होंगे। हमारे पास कृष्ण का शब्द ही आता है, कृष्ण का सत्य नहीं।

मैंने सुना है, एक कवि समुद्र की यात्रा पर गया है। जब वह समुद्र तट पर पहुंचा, तो बहुत सुंदर सुबह थी; बहुत सुंदर प्रभात था। पक्षी गीत गाते थे वृक्षों पर। सूरज की किरणें नाचती थीं लहरों पर। लहरें उछलती थीं सागर की छाती पर। हवाएं ठंडी थीं और फूलों से सुवास आती थी। वह नाचने लगा उस सुंदर प्रभात में, और फिर उसे याद आया कि उसकी प्रेयसी तो अस्पताल में बीमार पड़ी है। काश वह भी आज यहां होती। वह तो बिस्तर से बंधी है। उसके उठने की कोई संभावना नहीं है।

तो उस कवि को खयाल आया कि 'क्यों न मैं ऐसा करूं कि समुद्र की इन ताजी हवाओं को, सूरज की इन नाचती हुई किरणों को, लहरों के इस संगीत को, फलों की इस सुवास को अपनी प्रेयसी के लिए एक पेटी में बद करके ले जाऊं। और जाकर उसे कहूं कि देख कितनी सुंदर सुबह का एक टुकड़ा मैं तेरे लिए लाया हूं।'

वह गांव गया और एक पेटी खरीद लाया। बहुत सुंदर पेटी थी। उस पेटी को खोलकर उसने उसमें समुद्र की ठंडी हवाएं भर ली सूरज की नाचती किरणें भर ली फूलों की सुगंध भर ली। उस पेटी में सुबह का एक टुकड़ा बंद करके, उसे ताला लगा दिया कि कहीं से वह सुबह बाहर न निकल जाए। और उस पेटी को अपने एक पत्र के साथ उसने अपनी प्रेयसी के पास भेज दिया कि सुबह का एक सुंदर टुकड़ा सागर के किनारे का एक जिंदा टुकुड़ा तेरे पास भेजता हूं। नाच उठेगी तू, आनंद से भर जाएगी। ऐसी सुबह मैंने कभी नहीं देखी।

उस प्रेयसी के पास पत्र भी पहुंच गया और पेटी भी पहुंच गयी। पेटी उसने खोली, लेकिन पेटी के भीतर तो कुछ भी नहीं था। न सूरज की किरणें थी न सागर की ठंडी हवाएं थीं; न कोई फूलों की सुवास थी। वह पेटी तो बिल्कुल खाली थी। उसके भीतर तो कुछ भी नहीं था। पेटी पहुंचायी जा सकती है, लेकिन जिस सौंदर्य को सागर के किनारे जाना है, उसे नहीं पहुंचाया जा सकता।
जो लोग सत्य के जीवन में सागर के तट पर पहुंच जाते हैं, वे वहां क्या जानते है-कहना मुश्किल है; क्योंकि हमारे सूरज का प्रकाश जिस प्रकाश को वे जानते हैं उसके सामने अंधकार है। जिस सुवास को वे जानते हैं हमारे किसी फूल में वह सुवास नहीं है। वे जिस आनंद को जानते हैं हमारे सुखों में उस आनंद की एक किरण भी नहीं है। वे जिस जीवन को जानते है उस जीवन का हमें कुछ भी पता नहीं है। बस पेटियों में भर कर वे जो भेजते हैं-गीता में, कुरान में, बाइबिल में-वह हमारे पास आ जाता है। शब्द आ जाते हैं; लेकिन जो उन्होंने भेजा था वह पीछे छूट जाता है। वह हमारे पास नहीं आता। फिर हम उन पेटियों को सिर पर ढोए हुए घूमते रहते हैं। कोई गीता को लेकर घूमता है, कोई कुरान को, कोई बाइबिल को। और चिल्लाता रहता है कि सत्य मेरे पास है; सत्य मेरी किताब में है।

सत्य किसी भी किताब में न है, न हो सकता है। सत्य किसी शब्द में न है, न हो सकता है। सत्य तो वहां है, जहां सब शब्द क्षीण हो जाते हैं और गिर जाते हैं। जहां चित्त मौन हो जाता है, निर्विचार हो जाता है, वहां है सत्य।
न जहां कोई शास्त्र जाता है, न कोई सिद्धांत। इसलिए जो सिद्धांत और शास्त्रों की खूंटियों से बंधे हैं वे कभी जीवन के सागर के तट पर नहीं जा सकेंगे। यह मैंने पहले सूत्र में कहा।
दूसरे सूत्र में मैंने कहा कि जो लोग भीड़ से बंधे हैं और भीड़ की आंखों में देखते रहते हैं-'कि लोग क्या कहते हैं?' वे लोग असत्य हो जाते हैं, क्योंकि भीड़ असत्य है। भीड़ से ज्यादा असत्य इस पृथ्वी पर और कुछ भी नहीं है।

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