कविता संग्रह >> कामायनी कामायनीजयशंकर प्रसाद
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इड़ा के लिए मनु को
अत्यधिक
आकर्षण हुआ और श्रद्धा से वे कुछ खिंचे। ऋग्वेद में इड़ा का कई जगह उल्लेख
मिलता है। यह प्रजापति मनु की पथ-प्रदर्शिता मनुष्यों का शासन करने वाली
कही गयी है। इड़ा के संबध में ऋग्वेद में कई मंत्र मिलते हैं। इन मंत्रों
में मध्यमा, वैखरी और पश्यंती की प्रतिनिधि भारती, सरस्वती के साथ इड़ा का
नाम आया है। लौकिक संस्कृति में इड़ा शब्द पृथ्वी अर्थात् बुद्धि, वाणी आदि
का पर्यायवाची है। इस इड़ा या वाक् के साथ मनु या मन के एक और विवाद का भी
शतपथ में उल्लेख मिलता है जिसमें दोनों अपने महत्व के लिए झगड़ती हैं।
ऋग्वेद में इडा को धी, बुद्धि का साधन करने वाली; मनुष्य को चेतना प्रदान
करने वाली कहा है। पिछले काल में संभवत: इड़ा को पृथ्वी आदि से सम्बद्ध कर
दिया गया हो, किन्तु ऋग्वेद (5-5-8) में इड़ा और सरस्वती के साथ मही का अलग
उल्लेख स्पष्ट है। ''इड़ा सरस्वती मही तिस्रोदेवी मयोभुव:'' से मालूम पड़ता
है कि मही से इड़ा भिन्न है। इड़ा को मेघसवाहिनी नाड़ी भी कहा गया है।
अनुमान
किया जा सकता है बुद्धि का विकास, राज्य-स्थापना इत्यादि इड़ा के प्रभाव से
ही मनु ने किया। फिर तो इड़ा पर भी अधिकार करने की चेष्टा के कारण मनु को
देवगण का कोपभाजन होना पड़ा। इड़ा देवताओं की स्वसा थी। मनुष्यों को चेतना
प्रदान करने वाली थी। इसलिए यज्ञों में इड़ा का बुद्धिवाद श्रद्धा और मनु
के बीच व्यवधान बनाने में सहायक होता है। फिर बुद्धिवाद के विकास में अधिक
सुख की खोज में, दुख मिलना स्वाभाविक है। यह आख्यान इतना प्राचीन है कि
इतिहास में रूपक का भी अद्भुत मिश्रण हो गया है। इसलिए मनु, श्रद्धा और
इड़ा इत्यादि अपना ऐतिहासिक अस्तित्व रखते हुए, सांकेतिक अर्थ की भी
अभिव्यक्ति करें तो मुझे कोई आपत्ति नहीं। मनु अर्थात् मन के दोनों पक्ष
हृदय और मस्तिष्क का संबंध क्रमश: श्रद्धा और इड़ा से भी सरलता से लगाया
जाता है। इन्हीं सबके आधार पर 'कामायनी' की कथा-सृष्टि हुई है।
हां,
कामायनी' की कथा श्रृंखला मिलाने के लिए कही-कहीं थोड़ी-बहुत कल्पना को भी
काम में ले लाने का अधिकार मैं नहीं छोड़ सका हूं।
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