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उपन्यास >> खजाने का रहस्य

खजाने का रहस्य

कन्हैयालाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9702
आईएसबीएन :9781613013397

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भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य

वह फिर चला, किन्तु भय और भी अधिक तेजी से उसका पीछा करने लगा। उसने सोचा- 'कहीं डॉ. साहब के प्राण तो नहीं लौट आये हैं।'

इस विचार के आते ही वह व्यथित हो उठा- 'हे भगवान! यदि ऐसा हो गया होगा तो वह बिना-मौत के मारा जायगा।' सोचने-विचारने में अधिक विलम्ब न करके उसने जीप वापिस मोड़ दी। वह डॉ. साहब के शव को एक बार पुन: देख लेना चाहता था, ताकि उनकी मौत से

निश्चिन्त हुआ जा सके। धुँआधार दौड़ती हुई जीप लौटकर उसी स्थान पर जा पहुँची, जहाँ मृत डॉ. साहब का शव पड़ा हुआ था।

माधव ने जीप एक पेड़ के नीचे खड़ी कर दी और स्वयं लाश की ओर बढ़ने लगा। वह चारों ओर निगाह पसार कर बार-बार देखता भी जाता था। लाश के समीप पहुँचकर उसने एक ईंट उठाकर लाश पर मारी। लाश उलट गई। तभी उसे ऐसा आभास हुआ-मानो उसके पीछे कुछ लोग खड़े हुए उसे देख रहे हैं। उसकी बड़े जोर से चीख निकल गई। उसने पीछे घूमकर देखा तो उसे दूर-दूर तक कोई मनुष्य दिखाई न दिया। उसे आश्चर्य था कि यह सब क्या हो रहा है! वह तेजी से जीप की ओर भागा। जीप स्टार्ट की। दिन काफी निकल आया था। उसे कुछ-कुछ भूख अनुभब हुई। कुछ नाश्ता कर लेना उसने उचित समझा। अत: जिस होटल में रात को वे ठहरे थे, उसी होटल में वापिस पहुँच कर नाश्ता और विश्राम लेना उसे ठीक जान पड़ा। फिर जीप का लक्ष्य होटल था।

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