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उपन्यास >> खजाने का रहस्य

खजाने का रहस्य

कन्हैयालाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9702
आईएसबीएन :9781613013397

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भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य

तभी रखवाले का फेंका हुआ एक नुकीला पत्थर एक सुअर के मस्तक में लगा और वह सुअर वहीं ढेर हो गया। अपने स्राथी को मौत की नींद सोते देखा तो सुअरों का सरदार कोध से पागल हो उठा। उसने अपने साथियों को संकेत किया। उन्होंने ईख तोड़ना बन्द कर दिया और फिर उन्होंने अपना लक्ष्य बनाया - रखवाले का मचान। बुरी तरह गुरगुराते हुए सभी एक साथ मचान की ओर बढ़ने लगे। इस घटना के भी ३-4 फोटो डा. भास्कर ने ले लिए। तब तक जीप ईख के खेत के बिल्कुल समीप पहुँच चुकी थी।

रखवाले ने सुअरों को अपने मचान की ओर बढ़ते देखा तो बह समझ गया कि अब खैर नहीं। वह मचान से कूदकर सुअरों की विपरीत दिशा में तेजी से भागा। तभी माधव को क्या सूझा कि उसने अपनी पिस्तौल से निशाना साधा और एक सुअर को चटका दिया। सभी सुअरों ने पीछे मुड़कर एक बार देखा और पुन: रखवाले की ओर ही भागने लगे। इस बीच माधव ने दूसरा फायर कर दिया। उसने एक सुअर की जान और ले ली।

फिर क्या था! सुअरों ने खेत के रखवाले की बजाय अपनी मुहिम का रुख डा. साहब की जीप की ओर मोड़ दिया। यह सब इतनी तेजी से हुआ कि माधव भौंचक्का-सा, किंकर्तव्य-विमूढ़ की भाति देखता ही रह गया। इतना भी अवसर न था कि जीप मोड़कर भागा जा सके। निदान डा. साहब और माधव दोनों ही जीप से कूदकर पैदल ही बचाव के लिए भागने लगे।

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