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उपन्यास >> खजाने का रहस्य

खजाने का रहस्य

कन्हैयालाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9702
आईएसबीएन :9781613013397

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भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य

आठ


डाकू गब्बरसिंह के आतंक से चार-पाँच जिलों का समूचा क्षेत्र आतंकित था। उसने पुलिस की आँखों की नींद छीन ली थी और धनी लोगों का सुख-चैन। सम्पन्न लोग उसके नाम से ही थर्राते थे।

उसी डाकू गिरोह द्वारा लाला घसीटामल की हत्या व उसके यहाँ भारी लूट-पाट का समाचार जब पुलिस को मिला तो वह बुरी तरह चौंकी। उस इलाके की पुलिस उन दिनों सरगर्मी से उसकी तलाश कर रही थी, किन्तु पुलिस के हत्थे चढ़ने की बजाय गब्बरसिंह ने एक नया गुल और खिला दिया था। यह तो मानो पुलिस के लिए एकदम खुला चेलैंज था।

पाँच जिलों के पुलिस-अधीक्षकों ने मीटिंग करके उस दुर्दान्त डाकू को पकड़ने के लिए संयुक्त रूप से प्रयास करने का निर्णय लिया। फलस्वरूप उस घटना के कुछ दिनों बाद ही पुलिस ने अपना अभियान तेज कर दिया।

डाकूदल भी असावधान न था। अपने जासूसों से गब्बरसिंह को पुलिस की सरगर्मी का पता चल गया था। लाला घसीटामल के यहाँ की गई डकैती में मिली बेशुमार दौलत ने तो उसका दिमाग सातवें आसमान पर ही जा बिठाया था, यों वह दुस्साहसी पहले भी कम न था।

एक दिन अपने गुप्त स्थान पर उसने सभी साथियों को एकत्रित किया और बोला- 'साथियों! पुलिस हमारी टोह में जंगल का कोना- कोना छान रही है। यदि उसने इसी गति से खोज जारी रखी तो वह दिन दूर नहीं, जब हमारा यह गुप्त-स्थान भी वह खोज निकालेगी।

मैं तुम लोगों से यह पूछना चाहता हूँ कि तुम्हें कुत्तों की मौत पसंद है या शेर बनकर पुलिस के बुजदिल और निकम्मे गीदड़ों का शिकार करना?'

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