उपन्यास >> खजाने का रहस्य खजाने का रहस्यकन्हैयालाल
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भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य
तीन
अजयगढ़ नामक विशाल दुर्ग
के भयंकर खण्डहर में डॉ. भास्कर एक नक्शे को फैलाये हुए विचारपूर्ण मुद्रा
में बैठे थे। उनका सहयोगी माधब सीटी बजाता हुआ इधर से उधर मटरगस्ती कर रहा
था।
लगभग दो घण्टे तक डा. साहब ध्यान-मग्न बैठे रहे, तब अचानक ही नक्शे के एक बिन्दु पर उनकी नजरें ठहर गयीं। उन्होंने मुस्कराकर ऊपर को दृष्टि उठाई।
माधव ने देखा - उनकी आँखों में प्रसन्नता की चमक उतर आयी थी।
'तीर शायद निशाने पर बैठ गया है, सर?' माधव ने पूछा।
'हाँ, माधवजी, बिल्कुल सही निशाने पर!' प्रसन्नता में डूबकर डॉ. साहब ने माधव से कहा और तेजी से खण्डहर के एक कोने में बढ़ गये। थोड़े से प्रयास के बाद ही मानचित्र में दर्शाये गये संकेत (एक सिंहासन पर विराजमान बिल्ली का शरीर और स्त्री की मुखाकृति) को खोजने में डा. भास्कर को सफलता मिल गई। उन्होंने, उस राज्य के स्थानीय पुरातत्व अधिकारी से सम्पर्क करके उस स्थान को खुदवाने की व्यवस्था कर दी।
उस दुष्कर कार्य को अत्यन्त सरलता से निपटा लेने पर डा. साहब को भारी प्रसन्नता हुई। रात को डाक-बंगले में वह अपने बिस्तर पर लेटे हुए भारत के प्राचीन इतिहास-सम्बन्धी कोई ग्रन्थ पढ़ रहे थे। उन्हें उस ग्रन्थ में शायद अपने मतलब की कोई बात मिल गई थी। अचानक ही बोल उठे- 'माधवजी!'
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