उपन्यास >> खजाने का रहस्य खजाने का रहस्यकन्हैयालाल
|
1 पाठकों को प्रिय 152 पाठक हैं |
भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य
उन सन्दूकों को ले जाना तो ठीक न था। दूसरे सन्दूकों में सारी दौलत को होटल-मालिक ने अकेले ही पलटा और जीप की बजाय अपनी कार की में उन सन्दूकों को लादा। फिर अपने मित्र के यहाँ चल दिया।
जाते समय मैनेजर से कह गया कि कोई आवश्यक कार्य हो तो लाला घसीटामल के यहाँ फोन कर देना।
लाला घसीटामल से एकान्त में मिलकर होटल के मालिक ने कहा- 'मित्र, मेरे यहाँ आज आयकर वाले निरीक्षण करने आ रहे हैं। मैं अपने जीवन भर की कमाई तुम्हारे यहाँ छोड़े जा रहा हूँ। चार-छ: दिन बाद मँगा लूँगा। इस घटना को आप गोपनीय रखें।'
सेठ घसीटामल के होटल वाले के साथ 'दाँत-काटी रोटी' के सम्बन्ध थे। उसने कोई ऐतराज न किया। लाला ने अपने जिगरी दोस्त को बिना कुछ खिलाये-पिलाये वापिस जाने देना उचित न समझा, अत: थोड़ी देर के लिए और रोक लिया।
इसी बीच में होटल से मैनेजर का फोन आया कि होटल में दो ग्राहक आपस में झगड़ा कर बैठे हैं, होटल में पुलिस आई हुई है, आप अभी दो घण्टे अपने दोस्त के पर पर ही गुजारें तो अच्छा है। होटल का मालिक हत्या करके आया था, पुलिस का नाम सुनते ही बह काँप गया। उसने वह पूरा दिन अपने मित्र के यहाँ बिताना ही उचित समझा।
तभी पुन: फोन घनघना उठा- 'पुलिस जीप के मालिक से मिलना चाहती है। वह पैसेंजर शायद अपना रूम बन्द करके कहीं चला गया है। आपको उसके विषय में कुछ जानकारी है क्या?'
'मर गये! अब क्या होगा!' होटल वाले के मुँह से अचानक ही निकल पड़ा। उसने मैनेजर को तो जबाब दे दिया कि बह थोड़ी देर में ही होटल पहुँच रहा है किन्तु वह स्वयं भारी व्यग्र हो उठा। तब उसने अपनी योजना में लाला घसीटामल को भी शामिल करना उचित समझा। उसने सारी कहानी उसे बता दी।
|