उपन्यास >> खजाने का रहस्य खजाने का रहस्यकन्हैयालाल
|
1 पाठकों को प्रिय 152 पाठक हैं |
भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य
तब तक दो डाकू अन्दर कमरे में आ पहुँचे। उन्होंने लाला को मूर्च्छित होते देखा तो वे समझे लाला मक्कर गाँठ रहा है।
एक ने अपने बूट की जोरदार ठोकर लाला की गर्दन में मारी और बोला- 'उल्लू के पट्ठे! हम तेरी रग-रग को पहचानते हैं। हमारे आगे तेरी मक्करबाजी नहीं चलेगी।' बूट की ठोकर इतनी घातक थी कि लाला ने बस' एक जोरदार हिचकी ली और प्राण 'फुर्र-चिरैया' हो गये।
डाकुओं को उसके मरने की चिन्ता न थी। उन्होंने सेठानी को धमकाया- 'सेठानी, ला तिजोरी की चाबियाँ हमें दे दे। यदि चीखी- चिल्लाई तो इस हरामी की भाँति तुझे भी यमलोक की टिकट थमा दी जाएगी।'
सेठानी रोती-बिसूरती हुई चीखी- 'कम्बख्तों! नाशपीटो!! तुमने मेरा सुहाग छीनकर मेरे पास छोड़ा ही क्या है, जिसकी चाबी मैं तुम्हें दूँ? हवेली पड़ी है, इसे उठा ले जाओ!'
डाकू उसे और अधिक तंग करके चाबियाँ माँगते, इसके पूर्व ही उन्हें उनके साथियों ने पुकारा- 'जुम्मा और जालिम! इधर आ जाओ! भगवान भला करे इस सेठ का, इसने अपनी सारी दौलत मानो हमारे लिए ही खोलकर रखी हुई है।'
उन दोनों की समझ में अपने साथियों की बात नहीं आई। फिर भी वे तेजी से उनकी तरफ लौट पड़े। देखा तो सचमुच ही दो बड़े सन्दूकों में से अशर्फियाँ व आभूषण निकालने में उनके सभी साथी जुटे हुए थे। बिना अधिक परिश्रम और खून-खराबा किए इतनी दौलत हाथ लग जाने से डाकूदल परम-प्रसन्न हो गया। अधिक देर वहाँ रुककर अपने लिए मुसीबत को न्यौता देना उचित न ता। वे उस खजाने को अपने बोरों में पलटकर जिस तेजी से आये थे, उसी तेजी से भाग गये।
|