उपन्यास >> खजाने का रहस्य खजाने का रहस्यकन्हैयालाल
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भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य
'सरदार! आपकी आज्ञा की देर है हम अपना शीश हथेली पर रखकर महाकाल से भी भिड़ने को तैयार हैं।' उसके सहयोगी बोले। गब्बरसिंह ने गर्व से इठलाते हुए अपने दल पर नजर डाली और बोला- 'शाबाश वीरों, शाबाश. मुझे तुम से यही उम्मीद थी। अब मेरा निर्णय सुन लो।'
'सभी लोगों ने अपने सरदार के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं।
'साथियो! तुम लोगों की मदद से मैनें रात की डकैतियाँ तो बहुत सा डाली हैं, मगर अभी दिन-दोहपर की कोई डकैती नहीं डाली है। मेरी इच्छा है कि मैं अब दिन में एक डाका डालूँ!'
'दिन में डाका?' सभी साथी चौंक पड़े।
ठहाका लगा गब्बरसिंह ने कहा- 'हा... हा... हा... डर गये न, मेरे बहादुर दोस्तो?'
अपनी स्थिति पर झेंपते हुए साथी सम्हाले- 'नहीं सरदार! आप जो भी निर्णय लें, हमें सहर्ष स्वीकार होगा।'
'ठीक है! मैं स्टेट बैंक के मैनेजर को सूचना भेजे देता हूँ कि आज के ठीक चौथे दिन बैंक का खजाना लूटा जायगा।'
'हे भगवान! दिन में डाका-वह भी पहले सूचना देकर!'
साथी क्या कहते? वे मन-ही-मन तो भय से काँप गये किन्तु प्रत्यक्ष में बोले- 'ठीक है सरदार! आप बैंक को सूचना भेज दीजिये, गब्बरसिंह जिन्दाबाद! हमारा सरदार अमर रहे।' बैंक को सूचना भेज दी गई।
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