उपन्यास >> खजाने का रहस्य खजाने का रहस्यकन्हैयालाल
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भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य
'तो सुनिये सर। एक गरीब बुढ़िया थी। उसका इकलौता वेटा भी था। बेटा जंगल से लकड़ियाँ काटकर लाता और उन्हें बाजार में बेचकर अपना और अपनी बुढ़िया माँ का पेट जैसे-तैसे भरता।' ' हुँ... ' डॉ. साहब ने हुँकारा भरा और मुस्कराते हुए बोले- 'माधवजी, कहानी या चुटुकुले के बीच में जब तक हुंकारा नहीं भरा जाता, सुनाने बाले का मन भरता नहीं।'
'यह बात बिल्कुल ठीक है सर।' आगे सुनिये- 'एक दिन उस बुढ़िया के बेटे की खोपड़ी में सुबह-सुबह ही खुजली मचने लगी। वह अपनी माँ से बोला- 'मां, तुम हर काम में शकुन विचारती हो, मेरा भी एक शकुन विचार दो।'
'क्या बात है, बेटे!' माँ ने पूछा।
'माँ, मेरी खोपड़ी आज सुबह से खुजला रही है, इसका क्या फल होगा? शुभ या अशुभ?'
'बेटा.....' एक दीर्ध-श्वास लेकर बुढ़िया बोली- 'एक ही प्रकार का शकुन दो प्रकार के फल दिया करता है।'
'वह कैसे माँ?' बेटे ने पूछा।
'बेटा, तेरे स्थान पर यदि किसी धनिक लड़के की खोपड़ी में खुजली मचती तो वह इस बात का संकेत होता कि लड़के के सिर पर सेहरा बँधेगा, और..........'
'और माँ, मेरे सिर की खुजली किस सूचना का संकेत है?' लड़के ने माँ की बात को बीच में ही काटा।
'बही तो बता रही थी, बेटे! तेरी खोपड़ी खुजाने का अर्थ हो सकता है - किसी के द्वारा पिटाई होना। सावधान रहना मेरे बेटे।' 'दो तरह का फल क्यों होता है, माँ?' बेटे ने पूछा।
'इस क्यों का उत्तर तो मेरे पास नहीं है बेटे। परन्तु होता यही है। शायद विधाता का विधान धनिकों के लिए अलग और हम जैसे दरिद्रों के लिए अलग ही है।'
'तब तो मां, मैं आज लकड़ी लेने जाता ही नहीं हूँ।' न होगा वाँस, न बजेगी बाँसुरी।' जब मैं घर से बाहर ही नहीं निकलूँगा तो अनिष्ट होने की आशंका ही न रहेगी।'
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