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उपन्यास >> कुसम कुमारी

कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी


पचीसवां बयान

सुबह का सुहावना सभा समां के लिए एक सा नहीं होता। यद्यपि आज ही सुबह उन लोगों के लिए जी हर तरह से खुश है सुखदाई है परन्तु उस होनहार जवांमर्द की सुबह दुःखदाई जान पड़ती है जिसका नाम रनबीरसिंह है और जिसका हाल सब इस बयान में हम लिखेंगे।

पारिजात के घने जंगल में एक पेड़ के नीचे रनबीरसिंह अपने को कोमल पत्तों के बिछावन पर पड़े हुए पाते हैं। सुबह की ठंडी-ठंडी हवा ने उनको जगा दिया है और वे ताज्जुब भरी निगाहों से चारों तरफ देख रहे हैं और जब अपने यकायक यहां आने का सबब नहीं मालूम होता तो यह सोचकर फिर आंखें बन्द कर लेते हैं कि अवश्य यह निद्रा की अवस्था है और मैं स्वप्न देख रहा हूं। जागने की बनिस्बत स्वप्न का भ्रम जो उन्हें विशेष हो रहा है इसका एक सबब यह भी है कि उनके जख्मों पर यद्यपि अभी तक पट्टी बंधी हुई है मगर दर्द की तकलीफ बिलकुल नहीं है। कल तक उनके जख्मी हाथ में ताकत बिलकुल न थी परन्तु इस समय उसे बखूबी हिला-डुला सकते हैं, कमजोर बदन में इस समय ताकत मालूम होती है, और वे अपने को बखूबी चलने-फिरने के लायक समझते हैं।

जख्मी आदमी की अवस्था थोड़ी ही देर में यकायक इस तरह नहीं बदल सकती, इस बात को सोचकर उन्होंने दिल में निश्चय कर लिया कि यह स्वप्न है और फिर आंखें बन्द कर लीं। मगर थोड़ी देर तक चुपचाप पड़े रहने के बाद फिर आंखे खोलकर उठ बैठे और अचम्भे में आकर चारों तरफ देखते हुए धीरे-धीरे बोलने लगे–

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