उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
अट्ठाईसवां बयान
रनबीरसिंह दो दिन के जागे हुए थे इसलिए नींद ने उन्हें अच्छी तरह धर दबाया, ऐसा सोये कि पहर दिन चढ़े तक आंख न खुली और उस मकान के रहने वालों में से किसी ने उन्हें न जगाया। आखिर जब आंख खुली तो ‘तू ही तो है!’ कहते हुए उठ बैठे। उस समय बीस-पचीस आदमी इनके सामने हाथ जोड़े खड़े थे जिन्हें देखकर रनबीरसिंह ने बैठने का इशारा किया और बोले, ‘‘तुम लोगों को जो कुछ कहना हो कहो।’’ उन आदमियों में वह नौजवान भी था जिसके पीछे-पीछे इस विचित्र स्थान में रनबीरसिंह आए थे और जिससे पहले पहल उस हाते में मुलाकात हुई थी। इस किस्से में जब तक उसको जरूरत पड़ेगी हम उसे नौजवान ही के नाम से लिखेंगे। जब सब कोई बैठ गए तो नौजवान ने हाथ जोड़कर रनबीरसिंह से कहा, ‘‘इस समय गुरु महाराज की जो कुछ आज्ञा हो हम लोग करने को तैयार हैं।’’
रनबीर–सिवाय इसके और कुछ भी कहना नहीं है कि सतगुरु की पूजा के लिए ग्यारह फल कहीं से ला दो।
नौजवान–(सिर झुकाकर) जैसी आज्ञा। (अपने साथियों में से एक की तरफ देखकर) तुम जाओ।
रनबीर–इस समय और कोई बात अगर न हो तो तुम लोग जाओ अपना-अपना काम करो, मेरे पास व्यर्थ बैठने की कोई जरूरत नहीं। अहा! तू ही तो है!!
नौजवान–हम लोग चाहते हैं कि आज की कचहरी आपके सामने की जाए और उसमें सब काम आप ही की आज्ञानुसार किया जाए। रनबीरसिंह और कुसुम कुमारी के हाथ से दुःखी होकर बालेसिंह यहां आया है और सतगुरु की मदद चाहता है, अब तक उसकी मदद बराबर की हई है, आगे के लिए जैसी आज्ञा हो। बालेसिंह बड़ा ही नेक, ईमानदार और सतगुरु का भक्त है।
रनबीर–बालेसिंह का हाल हमें मालूम हो चुका है और सतगुरु ने उसके विषय में जो कुछ कहना था वह भी दिया है, परन्तु सतगुरु की आज्ञा बालेसिंह को आज के पांचवे दिन सुनाई जाएगी।
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