उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
तीसवां बयान
बेचारी कुसुम कुमारी ने रनबीरसिंह का पता लगाने के लिए बहुत ही उद्योग किया परन्तु सब व्यर्थ हुआ। दो दिन बीते, चार दिन बीते, सप्ताह-दो सप्ताह के बाद महीने दिन की गिनती भी कुसुम ने अपनी नाजुक उंगलियों पर पूरी की, मगर रनबीरसिंह का कुछ हाल मालूम न हुआ। बेचारी कुसुम मुरझा गई, उसे कोई चीज, कोई बात अच्छी नहीं लगती थी, पर तिस पर भी आशा ने जान बचाने के लिए दूसरे-तीसरे कुछ थोड़ा सा अन्न खा लेती और तमाम रात आंखों में बिताकर ईश्वर से रनबीर को कुशलपूर्वक रखने की प्रार्थना किया करती थी।
बीरसेन को भी रनबीर से बड़ी मुहब्बत हो गई थी अतएव उसने भी रनबीर का पता लगाने के लिए कोई बात उठा नहीं रखी और उतना ही उद्योग किया जितना एक परले सिरे का उद्योगी मनुष्य कर सकते हैं, परन्तु परिणाम कुछ भी न हुआ।
आज जिस दिन का हम जिक्र कर रहे हैं वह शुक्ल पक्ष की द्वितीया का दिन है। संध्या होने के पहले ही कुसुम कुमारी अपनी अटारी पर चढ़ गई और आश्चर्य नहीं कि आज चन्द्रमा का दर्शन पृथ्वी के मनुष्यों में सबसे पहले उसी ने किया हो। यद्यपि अब चन्द्रदेव को निकले बहुत देर हो गई परन्तु कुसुम ने अभी तक उनकी तरफ से आंखें नहीं फेरी क्यों? क्या रनबीर से मिलने की आशा में चन्द्रमा से टपकते हुए अमृत को नेत्रों द्वारा पान करके कुसुम कुमारी अमर होना चाहती है? नहीं, ऐसा नहीं है, यदि ऐसा होता तो कलिकाल में प्राण रक्षा का सबसे बड़ा सहारा ‘अन्न’ कुसुम कुमारी के जी से न उतर जाता, तो क्या कुसुम कुमारी अपने कलेजे के दाग का चन्द्रमा के दाग से मिलान कर रही है? नहीं, यह भी नहीं है, क्योंकि इसका आनन्द बिना पूर्ण चन्द्रोदय के नहीं मिल सकता। तो क्या चन्द्रदेव से अपने टेढ़े नसीब को सीधा करने के लिए प्रार्थना कर रही है? नहीं-नहीं, चन्द्रदेव तो आज स्वयं ही बंक हो रहे हैं, उनसे ऐसी आशा बुद्धिमान कुसुम कुमारी को नहीं हो सकती। अच्छा कदाचित् कुसुम कुमारी इसलिए चन्द्रमा को बड़ी देर से देख रही है कि आज द्वितीया के चन्द्रमा का दर्शन आवश्यक होने के कारण रनबीर की आंखें भी चन्द्रदेव की ही तरफ लगी हुई होंगी, और नहीं तो इसी बहाने चार आंखें तो हो जाएंगी। ठीक है, यह बात ध्यान में आ सकती है, आश्चर्य नहीं कि अभी तक चन्द्रदेव की तरफ इसी लालच से कुसुम कुमारी देख रही हों।
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