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उपन्यास >> कुसम कुमारी

कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी


आठवां बयान

शैतान के बच्चे जसवंतसिंह ने बेचारे रनबीरसिंह के साथ बदी करने पर कमर बांध ली। उस पहली मुहब्बत की बू उसके दिल से बिलकुल जाती रही। अब तो यह फिक्र हुई कि जहां तक जल्द हो सके रनबीरसिंह की जान लेनी चाहिए, बल्कि इस खयाल ने उसके दिमाग में इतना जोर पैदा किया कि नेक और बद का कुछ भी खयाल न रहा और वह बेधड़क बालेसिंह की तरफ रवाना हुआ। हां, चलते समय उसने इतना जरूर सोचा कि महारानी ने पहले तो मेरी खूब ही खातिरदारी की थी मगर पीछे से इतनी बेरुखी क्यों करने लगी, यहां तक कि सवारी के लिए एक घोड़ा तक भी न दिया और मुझे पैदल बालेसिंह के पास जाना पड़ा! साथ ही इसके यह खयाल भी उसके दिल में पैदा हुआ कि पहले मुझे रनबीर का दोस्त समझे हुए थी इसलिए खातिरदारी के साथ पेश आई, मगर जब से मेरा सामना हुआ तब से वह मुझको मुहब्बत की निगाह से देखने लगी, इसी से इस नई मुहब्बत को छिपाने के लिए उसने मेरी खातिरदारी छोड़ दी।

इन्हीं सब बेतुकी बातों को सोचता विचारता बेधड़क बालेसिंह की तरफ पैदल रवाना हुआ। दो दिन रास्ते में लगाकर तीसरे दिन पूछता हुआ उस गांव में पहुंचा, जिसमें बालेसिंह थोड़े से शैतानों को लेकर हुकूमत करता था।

यह बालेसिंह का गांव देखने में एक छोटा-सा शहर ही मालूम होता था, जिसके चारों तरफ मजबूत दीवार बनी हुई थी और अंदर जाने के लिए पूरब और पश्चिम की तरफ दो बड़े-बड़े फाटक लगे हुए थे। दीवारें इस अंदाज की बनी हुई थीं कि अगर कोई गनीम चढ़ आवे, तो फाटक बंद करके अंदरवाले बखूबी अपनी हिफाजत कर सकते थे और दीवार के छोटे-छोटे सूराखों में से बाहर अपने दुश्मनों पर गोली और तीर इत्यादि बरसा सकते थे।

जसवंतसिंह जब पूरब के दरवाजे से उस छोटे से किलेनुमा शहर के अंदर घुसा, तो दरवाजे ही पर कई पहरेवालों से मुलाकात हुई। पहले तो यह फाटक के दोनों तरफ पहरेवालों को देखकर अटका मगर फिर सोच विचार कर आगे बढ़ा। पहरेवालों ने भी उसकी तरफ गौर से देखा और आपस में कुछ इशारा करके हंसने लगे। जब जसंवत कुछ आगे बढ़ा तब उन पहरेवालों में से दो आदमी उसके पीछे-पीछे रवाना हुए।

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