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उपन्यास >> कुसम कुमारी

कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी


बारहवां बयान

रनबीरसिंह और जसवंतसिंह को छोड़कर बालेसिंह निश्चिंत हो बैठा, मगर महारानी कुसुम कुमारी के मरने का गम अभी तक उसके दिल पर बना ही हुआ है। कामकाज में उसका जी बिलकुल नहीं लगता। इस समय भी दीवानखाने में अकेला बैठा कुछ सोच रहा है, तनोबदन की सुध कुछ भी नहीं है, उसे यह भी होश नहीं कि सुबह से बैठे शाम हो गई।

किसी की मजाल भी न थी कि ऐसी हालत में उसे टोकता या याद दिलाता कि अभी तक आपने स्नान भी नहीं किया। ऐसे मौके पर किसी आनेवाले के पैरों की चाप ने उसे चौंका दिया, सर उठाकर दरवाजे की तरफ देखा तो जसवंतसिंह!

बालेसिंह–(गुस्से में आकर) तुझे यहां आने की इजाजत किसने दी? तू यहां क्यों आया? क्या किसी पहरेवाले ने तुझे नहीं रोका? क्या तुझे अपनी जान प्यारी नहीं है?

जसंवत–मैं अपनी खुशी से यहां आया, मुझे चोबदार ने रोका और यह भी कहा कि इस समय तुम्हारे आने की खबर तक नहीं की जा सकती।

बालेसिंह–फिर इतना बड़ा हौसला तूने किस उम्मीद पर किया?

जसवंत–इस उम्मीद पर कि आप बेइंसाफी कभी न करेंगे और मेरी जबान से भारी खुशखबरी सुनकर खुश होंगे बल्कि इनाम देंगे।

बालेसिंह–(चौंककर) खुशखबरी!!

जसवंत–जी हां।

बालेसिंह–अब ऐसी कौन सी बात रह गई जिसे सुनाकर तू मुझे खुश करना चाहता है?

जसवंत–सिर्फ यही कि महारानी जीती जागती है और उसने तथा रनबीरसिंह ने आपको पूरा धोखा दिया।

बालेसिंह–कभी नहीं! तू झूठा है! मेरा पुराना खानदानी नौकर मुझसे झूठ कभी नहीं बोल सकता जो अपनी आंखों से वहां का सब हाल देख आया है!!

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