उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
यह खबर सुनकर बालेसिंह बहुत खुश हुआ और उसी जासूस को हुक्म दिया कि जहां तक जल्द हो सके जसवंतसिंह को बुला लावे। जासूस जसवंतसिंह के खेमे की तरफ रवाना हुआ और बालेसिंह खड़ा होकर सोचने लगा कि अब क्या करना चाहिए। थोड़ी देर में जसवंतसिंह भी लड़ाई के सामान से दुरुस्त होकर बालेसिंह के पास आ पहुंचा। बालेसिंह ने जासूस की जुबानी जो कुछ सुना था उससे कहा और इसके बाद जसवंतसिंह और उस जासूस को साथ लेकर किले के पिछली तरफ रवाना हुआ। जो कुछ सवार तैयार थे उन्हें साथ लेता गया और हुक्म दे गया कि पांच सौ सवार बहुत जल्द मुझसे आकर मिलें।
बालेसिंह थोड़ी ही दूर गया था कि पहले जासूस का एक और साथी भी आ पहुंचा और उसने खबर दी कि चोर दरवाजे से किले के अन्दर जो लोग घुसे थे उनमें से कई आदमी किसी को जबर्दस्ती गिरफ्तार करके ले आए और पालमपुर की तरफ रवाना हो गए। यह खबर पाकर बालेसिंह ने घोड़े की बाग मोड़ी और उस जासूस को यह आज्ञा देकर पालमपुर की तरफ रवाना हुआ कि तू इसी जगह खड़ा रह जब मेरे सवार यहां आवें तो उन्हें पालमपुर की तरफ भेज दे।
पालमपुर की तरफ लगभग आधा कोस गया होगा कि सामने से एक औरत आती हुई दिखाई पड़ी, जब पास पहुंचा तो उसे रोक कर पूछा कि ‘‘तू कौन है?’’ चांद अच्छी तरह निकल आया था इसलिए उस औरत ने बालेसिंह और जसवंतसिंह को बखूबी पहचान लिया और कहा, ‘‘मैं कालिन्दी हूं, इस समय तुम्हारा एक काम किए हुए चली आ रही हूं। इसके जवाब में बालेसिंह ने कहा, ‘‘जो कुछ तू कर चुकी है मुझे बखूबी मालूम है।’’
इसी समय बालेसिंह के और सवार भी आ पहुंचे, उनमें से दस सवारों को उसने आज्ञा दी कि इस औरत (कालिन्दी) को ले जाओ और हिफाजत से रखो। इसके बाद बालेसिंह बाकी सवारों को साथ लिए हुए तेजी के साथ पालमपुर की तरफ रवाना हुआ और बात की बात में वहां पहुंचकर उसने रनबीरसिंह इत्यादि को चारों तरफ से घेर लिया जैसा कि ऊपर के बयान में हम लिख आए हैं।
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