उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
यद्यपि चन्द्रदर्शन से उसकी तृप्ति नहीं होती थी और कदाचित् उसका इरादा बहुत देर तक वहां ठहरने का था परन्तु एक लौंडी ने अचानक वहां पहुंचकर ऐसी खबर सुनाई जिससे वह चौंक कर लौंडी की तरफ देखने लगी और बोली, ‘‘तूने क्या कहा?’’
लौंडी–रनबीरसिंह के पिता नारायणदत्त की सवारी शहर के पास आ पहुंची।
कुसुम–शहर के पास!!
लौंडी–जी हां, अब दो कोस से ज्यादे दूर न होगी।
कुसुम–क्या जासूस यह खबर लेकर आया है?
लौंडी–जी नहीं, उन्होंने स्वयं अपना आदमी खबर करने के लिए भेजा है।
कुसुम–बड़ी खुशी की बात है, अच्छा मैं नीचे चलती हूं तू दौड़ी हुई जा और बीरसेन को मेरे पास बुला ला।
‘बहुत अच्छा’ कहकर लौंडी वहां से चली गई और कुसुम कुमारी भी नीचे उतरकर अपने कमरे में आ बैठी, थोड़ी ही देर में बीरसेन भी वहां पहुंचे जिन्हें देखते ही कुसुम ने कहा, ‘‘सुनती हूं कि महाराज की सवारी शहर के पास आ पहुंची है।’’
बीरसेन–जी हां, यह खबर लेकर उनका खास मुसाहब यहां आया है, मगर हमारे जासूस ने और भी एक खुशखबरी सुनाई है।
कुसुम–वह क्या?
बीरसेन–वह कहता है कि दो-तीन दिन के अन्दर ही रनबीरसिंह भी यहां आने वाले हैं।
कुसुम–(खुश होकर) इसका पता उसे कैसे लगा?
बीरसेन–नारायणदत्तजी के लश्कर में जब वह गया था तो उन्हीं लोगों में से कई आदमियों को रनबीरसिंह के विषय में तरह-तरह की बातें करते सुना था जिसका नतीजा उसने यह निकाला कि रनबीरसिंह भी शीघ्र ही यहां आने वाले हैं।
कुसुम–ईश्वर करे कि जासूस का खयाल ठीक निकले परन्तु रंगविरंग की गप्पें सुनकर सच्ची बात का पता लगा लेना बहुत कठिन है, हां यदि मैं उन बातों को पूरा सुनूं, जो जासूस ने सुनी है, तो मालूम हो कि जासूस ने अपने मतलब का नतीजा क्योंकर निकाला।
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