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उपन्यास >> कुसम कुमारी

कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703
आईएसबीएन :9781613011690

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

इस जगह हम यह कहना पसन्द नहीं करते कि रनबीरसिंह किस तरह अपनी राजधानी में रहा करते थे क्योंकि कुसुम को छोड़ के और सभी को उसका हाल मालूम है तथापि रनबीर को पुनः जताने के लिए इतना अवश्य कहेंगे कि राजा नारायणदत्त (कुबेरसिंह) रनबीर को बराबर कहा करते थे कि जसवंत अच्छे खानदान का शुद्ध लड़का नहीं है अतएव तुम इस पर भरोसा न रखा करो और इसका साथ छोड़ दो।

थोड़े दिन तक उस पहाड़ी में ईश्वराधन करने के बाद इन्द्रनाथ वहां से उठकर अपने गुरु के पास गए और साल भर तक उनके पास रहने के बाद फिर अलग हुए क्योंकि उस जगह (जहां गुरुजी रहा करते थे) डाकुओं की आमदरफ्त शुरू हो गई थी और डाकुओं को उनका पता लग जाने का भय था अस्तु इन्द्रनाथ वहां से रवाना होकर मथुरापुरी की तरफ चले गए, फिर मुद्दत तक किसी को मालूम न हुआ कि राजा इन्द्रनाथ कहां गए, क्या हुए और उन पर क्या मुसीबत आई, तथापि राजा कुबेरसिंह और गुरु महाराज उनकी खोज में लगे रहे। इधर लगभग तीन वर्ष के हुआ होगा कि राजा कुबेरसिंह के एक जासूस ने आकर यह खबर दी कि राजा इन्द्रनाथ को बालेसिंह ने गिरफ्तार करके डाकुओं के हवाले कर दिया। इतना सुनते ही कुबेरसिंह गुरु महाराज के पास गए और सब हाल उनसे कहा और इसके बाद उसका पता लगाकर कैद से छुड़ाने की फिक्र होने लगी।

यह बात कई आदमियों को मालूम थी कि–बालेसिंह डाकुओं के किसी गिरोह का गुप्त रीति से साथी है और डाकुओं की बदौलत वह अपने को बड़ा ताकतवर समझता है और वास्तव में बात भी ऐसी ही थी। डाकुओं की बदौलत बालेसिंह बात की बात में अपने फौजी ताकत को तो बढ़ा ही लेता था, मगर वह खुद भी बड़ा काइयां और शैतान था। स्वयं राजा कुबेरसिंह ने उससे रंज होकर कई दफे उस पर चढ़ाई की थी मगर वह काबू में न आया, ईश्वर रनबीरसिंह पर सदैव प्रसन्न रहे जिसने अपनी बहादुरी से बालेसिंह को बेकाम कर दिया।

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