उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
रामसिंह ने मन में प्रसन्न होकर कहा कि मैं आपके साथ चलने के लिए जी जान से तैयार हूं परन्तु मालिक की आज्ञा होनी चाहिए।
मुख्तसर यह है कि डाकू सरदार ने रामसिंह को आठ-दस दिन के लिए मांग लिया और अपने साथ एक मुहिम पर ले गया। डाकू सरदार को खुश करने का यह बहुत अच्छा मौका रामसिंह के हाथ लगा और उसने मुहिम पर जाकर ऐसी बहादुरी दिखलाई कि डाकू सरदार मोहित हो गया और मुहिम पर से लौटने के बाद बड़ी जिद्द करके उसने बालेसिंह से रामसिंह को मांग लिया। जब रामसिंह डाकू सरदार के साथ जाने लगा तब उसने कह-सुनकर अपनी मां को भी साथ ले लिया जो उसके दिन का हाल अच्छी तरह जानती थी।
गिरनार पहाड़ के पास ही कहीं पर सतगुरु देवदत्त का कोई स्थान है। हम नहीं जानते कि ये ‘सतगुरु देवदत्त’ कौन थे और उनकी गद्दी का क्या हाल है, मगर इतना रामसिंह की जुबानी मालूम हो गया था कि आजकल के डाकू लोग ‘सतगुरु देवदत्त’ की गद्दी के चेले हैं और उनके नाम की बड़ी इज्जत करते हैं।
डाकू सरदार के पास जाने के बाद भी महीने में दो-तीन दफे रामसिंह गुरु महाराज के पास आया करता था। इसी महीने में जब डाकू सरदार ने खुश होकर रामसिंह को अपने सिपाहियों का सरदार बना दिया तब उसे मालूम हुआ कि इन्द्रनाथ इसी डाकू सरदार के कब्जे में पड़े हुए हैं, इसके पहले उसे इस बात का केवल शक था पर विश्वां न था।
जिस दिन इस किले के सामने मैदान में बालेसिंह से और रनबीरसिंह से लड़ाई हुई थी उसी दिन रामसिंह ने गुरु महाराज के पास आकर यह खुशखबरी सुनाई थी कि ‘इन्द्रनाथ का पता लग गया, वह उसी डाकू सरदार के कब्जे में है जिसके यहां मैं रहता हूं, आप जो कुछ उचित समझें करें और मुझे जो कुछ आज्ञा हो करने के लिए मैं तैयार हूं।
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