उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
सरदार चेतसिंह ने एक सिपाही से पूछा, ‘‘दीवान साहब अभी दरबार में आए या नहीं?’’ जिसके जवाब में उस सिपाही ने कहा, ‘‘अभी नहीं आए मगर आते ही होंगे, वक्त हो गया है, लेकिन आप उनके आने की राह न देखें क्योंकि हम लोगों को महारानी साहिबा का हुक्म है कि सरदार साहब जिस वक्त आवंस फौरन सीधे हमारे पास पहुंचे, दरवाजे पर अटकने न पावें, सो आप दीवान साहब की राह न देखिए!’’ इतना कह वह सिपाही इनके साथ चलने पर मुस्तैद हो गया।
सरदार चेतसिंह ने इतना सुन फिर दीवान साहब के आने की राह न देखी और सिपाही के कहे मुताबिक जसंवतसिंह को साथ लिए महल की तरफ रवाना हुए।
फाटक के अंदर थोड़ी दूर जाने पर एक निहायत खूबसूरत दीवानखाने में पहुंचे जिसके बगल में एक दरवाजा जनाने महल के अंदर जाने के लिए था। यह दरवाजा बहुत बड़ा तो न था मगर इस लायक था कि पालकी अंदर चली जाए। इस दरवाजे पर कई औरतें सिपाहियाना भेष किए, ढाल-तलवार लगाए रुआब के साथ पहरा देती नजर आईं, जिन्होंने सरदार चेतसिंह को झुककर सलाम किया। एक सिपाही औरत इन्हें देखते ही बिना कुछ पूछे अंदर चली गई और थोड़ी ही देर के बाद लौट आकर सरदार चेतसिंह से बोली, ‘‘चलिए, महारानी ने बुलाया है।’’
जसवंतसिंह को साथ लिए हुए सरदार चेतसिंह उसी औरत के पीछे-पीछे महल के अंदर गए। जसवंतसिंह ने भीतर जाकर एक निहायत खूबसूरत और हरा-भरा छोटा-सा बाग देखा जिसके पश्चिम तरफ एक कमरा और सजा हुआ दालान पूरब तरफ बारहदरी, दक्खिन तरफ खाली दीवार और उत्तर तरफ एक मकान और हम्माम नजर आ रहा था। बहुत-सी लौड़ियां अच्छे-अच्छे कपड़े पहने इधर-उधर घूम रही थीं।
औरत के पीछे-पीछे ये दोनों पश्चिम तरफवाले उस दालान में पहुंचे, जिसके बाद कमरा था। कमरे के दरवाजों में दोहरी चिकें पड़ी हुई थीं तथा दालान में फर्श बिछा हुआ था।
सरदार ने चिक की तरफ झुककर सलाम किया और इसी तरह जसवंतसिंह ने भी सरदार की देखा-देखी सलाम किया। इसके बाद एक लौंडी ने बैठने के लिए कहा और ये दोनों उसी फर्श पर बैठ गए। चारों तरफ से बहुत सी लौंडियां आकर उसी जगह खड़ी हो गईं और जसवंतसिंह को ताज्जुब की निगाह से देखने लगीं।
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