उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
ऊपर लिखा हुआ हाल कहकर साधु बाबा दम लेने के लिए कुछ रुक गए और फिर इस तरह कहने लगे, ‘‘जब रनबीरसिंह की आंखें खुलीं तो मेरा लिखा हुआ एक पुर्जा पढ़कर जिसे मैंने उसके पास वाले एक पेड़ के साथ चिपका दिया था पश्चिम की तरफ चल निकले और थोड़ी ही देर बाद इनकी मुझसे मुलाकात हुई। मैंने गुरु महाराज की आज्ञा से इन्द्रनाथ का कुछ हाल कागज पर पहले से ही लिख के इसलिए रख छोड़ा था कि इन्द्रनाथ का पता न लगेगा तो यह कागज कुसुम कुमारी के पास भेज देंगे। वही कागज मैंने रनबीर के आगे रख दिया जिसके पढ़ने से इन्हें सब हाल मालूम हो गया। इसके बाद मैं रनबीर को गुरु महाराज के पास ले गया और सब हाल कहा। गुरु महाराज ने इन्हें डाकुओं का सब भेद बताया, जहां वे रहते थे वहां का पता दिया, और यह भी कहा कि ये डाकू लोग सत्तगुरुदेवदत्त की गद्दी तथा उनके चेलों और नाम को हद से ज्यादे मानते हैं, तुम सत्तगुरुदेवदत्त के नकली चेले बन के वहां जाओ और अपने पिता को छुड़ाने का उद्योग करो। वहां डाकुओं के मकान में माई अन्नपूर्णा का एक स्थान है जिसकी पूजा एक औरत करती है, वह और उसका लड़का रामसिंह तुम्हारी मदद करेगा, हम बुढ़िया के नाम की एक चिट्टी लिख देते हैं, इस बात की खबर राजा नारायणदत्त के पास भेज दी गई है, तीन-चार दिन के अन्दर तुम्हारे पास मदद भी पहुंच जाएगी, मगर तुम अपना काम बड़ी होशियारी से करना जिसमें डाकू सरदार को तुम पर शक न होने पावे नहीं तो सब काम चौपट हो जाएगा, इस भरोसे पर मत रहना कि डाकू सरदार की जिन्दगी में उसके मकान की हद के अन्दर फौजी मदद (जो तुम्हारे पास भेजी जाएगी) कुछ काम कर सकेगी। तुम्हें मदद पहुंचने के पहले ही डाकू सरदार पर अपना कब्जा कर लेना चाहिए। इत्यादि बातें समझा-बुझाकर एक बूटी का रस लगा कर इनका रंग काला कर दिया और उस तरफ रवाना किया।
इतना कहकर साधु महाशय दम लेने के लिए फिर रुके और उस समय बीरसेन ने पूछा, ‘‘जब डाकू लोग सत्तगुरु देवदत्त को मानते हैं तो माई अन्नपूर्णा की पूजा क्यों करते हैं?’’
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