उपन्यास >> कुसम कुमारी कुसम कुमारीदेवकीनन्दन खत्री
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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी
दुष्ट और बेईमान जसवंत सिंह वहां बैठा-बैठा इसी किस्म की बातें सोच रहा था कि इतने में एक लौंडी वहां आई जिसे जसवंत ने पहले नहीं देखा था और उसने कहा, ‘‘भोजन तैयार है, चलिए खा लीजिए।’’
जसवंत– कहां चलूं? तुम्हारी महारानी कहां गई! क्या अब वह न आवेंगी?
लौड़ी– जी नहीं, अब इस वक्त उनसे मुलाकात न होगी, आपको दूसरे मकान में ले चल कर, भोजन कराने के लिए हुक्म दिया है।
जसंवत–अच्छा चलिए, उनका हुक्म मानना जरूरी है।
जसवंतसिंह को साथ लिए हुए वह लौंडी उस महल के बाहर हुई और अलग एक दूसरे मकान में ले गई, जहां खाने-पीने तथा आराम करने और सोने का बिलकुल सामान दुरुस्त था और दो लौंडियां भी हाजिर थीं।
जसवंत ने आज खूब पेट भर के भोजन किया और चारपाई पर लेटकर रनबीरसिंह और महारानी के बारे में क्या-क्या करने चाहिए, यही सब सोचने लगा।
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