उपन्यास >> नदी के द्वीप नदी के द्वीपसच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय
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व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।
तुम क्या कर रही हो, कब इधर आती हो?
कश्मीर से लौट कर तो शायद भेंट होगी ही। आगे क्या करने का विचार है?
लिखना! और क्या जाने, दैव-कृपा फिर मुझे छू जाए और मैं फिर पत्र लिख दूँ।
तुम्हारा स्नेही
भुवन ---
भुवन ---
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