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उपन्यास >> नदी के द्वीप

नदी के द्वीप

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9706
आईएसबीएन :9781613012505

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व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।


चन्द्र के सामने कोई स्पष्ट योजना रही हो, ऐसा नहीं था; कुछ तो शेखी में वह बात करता था, कुछ इस प्रकार रेखा को अहसान से बाँधने की नीयत से, और कुछ शायद यह भी था कि रेखा की चर्चा से रियासत में लोगों की आँखें उसकी ओर जाएँगी, कुछ तनाव पैदा होगा और रेखा फिर उससे साहाय्य चाहेगी...यही हुआ भी, क्योंकि ये अफ़सर लौटकर रेखा से मिले, रेखा को पार्टी पर निमन्त्रित किया; रेखा नहीं गयी, पर उनके निमन्त्रण के बाद और भी निमन्त्रण उसे मिले, लोग उसके घर पर मिलने भी आये। वह जो सदा किसी की आँखों के आगे होने से बचती थी, सहसा अपने को इस हलचल का केन्द्र पाकर समझ न सकी कि मामला क्या है। रानी ने भी दो-एक बार हल्की-सी चुटकी ली, यद्यपि उसमें नापसन्दी या आलोचना की भावना बिल्कुल न थी। तब एक दिन सहसा रेखा ने इस्तीफा दे दिया - कारण उसने यही बताया कि उसका स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं है और वह विश्राम चाहती है। रानी ने वास्तविक अनिच्छा से उसे छोड़ दिया; यह भी कहा कि वह चाहे तो लम्बी छुट्टी ले ले और फिर लौट आये, और जब रेखा ने नहीं माना तो यह भी कहा कि भविष्य में जब भी वह पुनः आना चाहे आ सकती है, उन्हें हर्ष ही होगा। कभी उनकी सहायता की ज़रूरत हो तो वह निस्संकोच उन्हें लिखे।

इस प्रकार, सर्वथा सद्भाव के साथ, रेखा नौकरी छोड़ आयी। स्थिति-परिवर्तन का कारण उसे ज्ञात न था। चन्द्र को उसने पत्र लिख कर सूचना दे दी, कारण ठीक-ठीक लिख दिया कि रियासत के कर्मचारियों की उसमें आवश्यकता से अधिक दिलचस्पी है। चन्द्र मन-ही-मन मुस्कराया; फिर उसने लिखा कि रेखा लखनऊ आ जाये; दो-एक और नौकरियाँ उसकी निगाह में हैं पर रेखा के आने से उस की सलाह से प्रबन्ध करेगा।

रेखा तत्काल नहीं आयी थी; आते-आते ईस्टर निकट आ गया था और लखनऊ से वह एक परिचित परिवार के यहाँ कुछ दिन बिताने प्रतापगढ़ जाने को वचनबद्ध हो आयी थी।

चन्द्र ने संवेदना बता कर यह भी प्रस्ताव किया था कि अब गर्मी के बाद ही रेखा नया काम करे - कुछ घूम-घाम ले और पहाड़ भी हो आये। और इस सिलसिले में जाड़ों की बात की याद भी दिला दी थी, पर आग्रह नहीं किया था। ईस्टर में भुवन आएगा, यह भी बता दिया था।

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