उपन्यास >> नदी के द्वीप नदी के द्वीपसच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय
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व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।
अनन्तर रात में उसने फिर पैड सामने खींचकर कलम हाथ में साधा;
थोड़ी देर कागज़ को देखते रह कर वह उठा; मेज़ पर जितने कागज़, किताबें,
पुराने पत्र, कलमदान, फूलदान, अखबार के कटिंग वग़ैरह थे, सब समेट कर उठाये
और ले जाकर मैंटल पर रख दिये, दुबारा आकर ताजे॓ लिखे हुए दोनों पत्र भी
उठाये और अन्य सब चीज़ों के ऊपर उसी प्रकार दाब देकर रख दिये। सूनी मेज़
पर रह गया केवल पैड, कलम, और टेबल लैम्प। उसे भी चन्द्र ने घुमा कर ऐसे
रखा कि दोनों ओर की कोई आकृति उसे न दीखे, केवल बीच का अन्तराल; आँत के
मैले पीले रंग में से पार का आलोक मद्धिम होकर आता था और उससे छादन में
जहाँ आँत का जोड़ था वहाँ एक धुँधली-सी, कहीं आलोकित और कहीं घनी
टेढ़ी-तिरछी लकीर झलक उठी थी, जैसे पहाड़ी प्रदेश के नक्शों में कोई नाला
आँका गया हो। एक सन्तुष्ट दृष्टि पूरे पैड पर डाल कर उसने फिर लिखा :
'प्रिय गौरा।'
यह पत्र समाप्त करके वह जब उठा, तब भोर का आकारहीन
फीकापन क्षितिज पर छा गया था। डाकघर का गजर खड़कता रहा कि नहीं,
चन्द्रमाधव ने नहीं सुना।
मेंटल पर रखे हुए पत्रों में से भुवन
वाला पत्र उसने फिर उठाया, और सावधानी से खोल दिया। 'पुनश्चः' के नीचे
लिखा : 'दूसरी बार पुनश्च : गौरा आजकल कहाँ है? उससे तुम्हारा
पत्र-व्यवहार होता है? उसे पत्र लिखो, तो मेरा नमस्कार भी लिखना, और लिखना
कि उसका कुशल-समाचार पाकर मैं अपने को धन्य मानूँगा। शायद मैं भी उसे
लिखूँ।”
पत्र फिर बन्द करके उसने पूर्ववत् रखा, बत्ती बुझा दी,
और बिछौने पर धम्म से लेट गया। बाहर क्षितिज कुछ स्पष्ट होने लगा था; एक
बार त्यौरियाँ चढ़े चेहरे से चन्द्र ने उधर ताका, फिर औंधा होकर तकिये में
मुँह छिपा लिया, ज़रा हिल-डुल कर शरीर को ढीला किया, नाक के सामने से
तकिये को दबाकर साँस की सुविधा की, फिर बाँह मोड़ कर चेहरे को उसकी ओट दे
दी और अधखुली मुट्ठी सिर पर ऐसी लगने लगी मानो चोट से बचने को ओट की गयी
हो।
दो-तीन मिनट बाद ही उसकी साँस नियमित चलने लगी-उस नियम से जो
हमारी संकल्पना का नहीं, उससे निरपेक्ष प्रकृति का अनुशासित है; और उसके
औंधे शरीर की सब रेखाओं में एक बेबस शिथिलता आ गयी।
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