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उपन्यास >> पथ के दावेदार

पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710
आईएसबीएन :9781613014288

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


अपूर्व बोला, “हंस क्यों दिए?”

डॉक्टर बोले, “आपके चाचा होते तो समझ जाते। आपको विश्वास है कि मैं एनार्किस्टों का नेता हूं। मेरे ही मुंह से उत्तर की आशा करना क्या उचित होगा। अपूर्व बाबू!”

अपनी बुद्धिहीनता पर अपूर्व अप्रतिभ होकर बोला, “आशा करना पूरी तरह अनुचित हो जाता अगर आप मुझे आज अपने दल में भर्ती न कर लेते। सदस्यों का इतनी बात जान लेने का अधिकार है। इससे अधिक जानने की उसे जरूरत नहीं है।”

“अधिकार है” कहकर डॉक्टर हंस पड़े, “विद्रोही दल के खाते में जिसका नाम लिखा गया है उसके प्रश्न का यही उत्तर है; इससे अधिक जानने की जरूरत नहीं है।”

अपूर्व तीखे स्वर में बोला, 'दल के खाते में झटपट नाम लिख लेने से ही तो कुछ नहीं होता। उसका फलाफल भी तो समझाना पड़ता है।”

“लेकिन उन लोगों ने क्या ऐसा नहीं किया है?”

“कुछ भी नहीं। 'पथ के दावेदार,' दावे का इतना ठाट-बाट है, यह कौन जानता था और आप भी थे। नाम लिखने के पहले आपको भी तो जान लेना उचित था कि मेरा वास्तविक उद्देश्य क्या है?”

डॉक्टर तनिक लज्जित होकर बोले, “महिलाओं ने ही यह सब आयोजन किया है। वह ही जानती हैं - किसे सदस्य बनाएं, किसे नहीं। वास्तव में मैं इन लोगों की सभा की कोई विशेष बात नहीं जानता अपूर्व बाबू!'

अपूर्व समझ गया कि यह भी परिहास ही है। उत्कंठा और आशंका से क्रुद्ध होकर बोला, “छिपा क्यों रहे हैं। डॉक्टर साहब! सुमित्रा को ही अध्यक्ष बनाइए और जिसे जो चाहे बना दीजिए। यह दल आपका है और आप ही इसके सब कुछ हैं, इसमें संदेह नहीं। पुलिस की आंखों में आप धूल झोंक सकेंगे, लेकिन मेरी आंखों को धोखा नहीं दे सकते, यह समझ लीजिए।”

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