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उपन्यास >> पथ के दावेदार

पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710
आईएसबीएन :9781613014288

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


सुमित्रा ने कहा, “आप हम लोगों को नहीं जानते, लेकिन भारती के द्वारा हम सभी आपसे परिचित हैं। सुना है, आप हमारी समिति के सदस्य बनना चाहते हैं। क्या यह सच है?”

अपूर्व ने गर्दन हिलाकर सम्मति प्रकट की। इनकार न कर सका। जो व्यक्ति एकाग्रचित्त से लिख रहा था, उसे लक्ष्य करके सुमित्रा ने कहा, “अपूर्व बाबू का नाम लिख लीजिए।” फिर हंसकर अपूर्व से कहा, “हमारे यहां किसी प्रकार का चंदा नहीं लिया जाता। हमारी समिति की यही विशेषता है?”

प्रत्युत्तर में अपूर्व ने हंसने की चेष्टा की, लेकिन हंस न सका। एक मोटी जिल्द वाले रजिस्टर में उनका नाम लिख लिया गया है, यह देखकर वह चुप न रह सका। बोला, “लेकिन उद्देश्य क्या है? मुझे क्या करना पड़ेगा? यह तो मैं कुछ नहीं जानता।”

“भारती ने आपको बताया नहीं?”

अपूर्व बोला, “कुछ तो बताया है। लेकिन एक बात आपसे पूछना चाहता हूं- नवतारा के आचरण को क्या आप वास्तव में अनुचित नहीं समझतीं?”

सुमित्रा ने कहा, “कम-से-कम मैं नहीं समझती। क्योंकि देश से बढ़कर मेरे लिए दूसरी कोई वस्तु नहीं है।”

अपूर्व श्रद्धा से भरे स्वर में बोला, “देश को मैं हृदय से प्यार करता हूं और देश की सेवा करने का अधिकार स्त्री-पुरुष को समान है। लेकिन इनके कर्म-क्षेत्र भी तो एक नहीं हैं। पुरुष बाहर काम करेंगे तो स्त्री तो घर में पति-पुत्र की सेवा करके ही सार्थक होगी। उसके सत्य कल्याण से देश का जितना बड़ा काम होगा, पुरुषों के साथ घर से निकलकर खड़ी होने से उतना न हो सकेगा।”

सुमित्रा हंस पड़ी।

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