उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
"माँ?" थिरकन।
"मेरा बेटा। मेरा नन्दी, आ मेरे कलेजे से लिपट जा। आ मेरे बच्चे। आ, आ मेरे बेटे ....।”
“माँ। भाभी। मेरी माँ।"
“तू मेरा फूल है नन्दी। तू मेरे जीवन का सबसे प्रथम फूल है। मेरी बहार का सबसे पहला फूल है सबसे पहला फूल है।"
एक कोंपल ! एक फूल ! एक धरती !
धरती की दराड़ों ने दामन खोला।
उसमें सें एक कोंपल फूटी।
मन के प्यार ने उसे सींच-सींच कर फूल बना दिया।
फूल धरती से लिपट गया।
"माँ....माँ।"
थकी मांदी घायल धरती ने आंखें बन्द करके सुख की पहली साँस ली और एक नई नवेली मुस्कान उसके होठों पर नाच उठी।
आज धरती नहीं रो रही थी।
परन्तु बाकी सभी रो रहे थे ! ! !
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