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जीवनी/आत्मकथा >> रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा

रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा

रामप्रसाद बिस्मिल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :216
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9718
आईएसबीएन :9781613012826

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प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बिस्मिल जी की आत्मकथा



पं० गेंदालाल दीक्षित


आपका जन्म यमुना-तट पर बटेश्व र के निकट 'मई' ग्राम में हुआ था। आपने मैट्रिक्यूलेशन (दसवां) दर्जा अंग्रेजी का पास किया था। आप जब ओरैया जिला इटावा में डी०ए०वी० स्कूल में टीचर थे, तब आपने शिवाजी समिति की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य था शिवाजी की भांति दल बना कर लूटमार करवाना, उसमें से चौथ लेकर हथियार खरीदना और उस दल में बांटना। इसकी सफलता के लिए आप रियासत से हथियार ला रहे थे जो कुछ नवयुवकों की असावधानी के कारण आगरा में स्टेशन के निकट पकड़ लिए गए थे। आप बड़े वीर तथा उत्साही थे। शान्त बैठना जानते ही न थे। नवयुवकों को सदैव कुछ न कुछ उपदेश देते रहते थे। एक एक सप्ताोह तक बूट तथा वर्दी न उतारते थे। जब आप ब्रह्मचारी जी के पास सहायता लेने गए तो दुर्भाग्यवश गिरफ्तार कर लिए गए। ब्रह्मचारी के दल ने अंग्रेजी राज्य में कई डाके डाले थे। डाके डालकर ये लोग चम्बल के बीहड़ों में छिप जाते थे।

सरकारी राज्य की ओर से ग्वालियर महाराज को लिखा गया। इस दल के पकड़ने का प्रबन्ध किया गया। सरकार ने तो हिन्दुस्तानी फौज भी भेजी थी, जो आगरा जिले में चम्बल के किनारे बहुत दिनों तक पड़ी रही। पुलिस सवार तैनात किए फिर भी ये लोग भयभीत न हुए। विश्वालसघात में पकड़े गए। इन्हीं का एक आदमी पुलिस ने मिला लिया। डाका डालने के लिए दूर एक स्थान निश्चिीत किया गया, जहां तक जाने के लिए एक पड़ाव देना पड़ता था। चलते-चलते सब थक गए, पड़ाव दिया गया। जो आदमी पुलिस से मिला हुआ था, उसने भोजन लाने को कहा, क्योंकि उसके किसी निकट सम्बंधी का मकान निकट था। वह पूड़ी बनवा कर लाया। सब पूड़ी खाने लग गए।

ब्रह्मचारी जी जो सदैव अपने हाथ से बनाकर भोजन करते थे या आलू अथवा घुइयां भून कर खाते थे, उन्होंने भी उस दिन पूड़ी खाना स्वीकार किया। सब भूखे तो थे ही, खाने लगे। ब्रह्मचारी जी ने एक पूड़ी ही खाई उनकी जबान ऐंठने लगी और जो अधिक खा गए थे वे गिर गए। पूरी लाने वाला पानी लेने के बहाने चल दिया। पूड़ियों में विष मिला हुआ था। ब्रह्मचारी जी ने बन्दूक उठाकर पूरी लाने वाले पर गोली चलाई। ब्रह्मचारी जी का गोली चलाना था कि चारों ओर से गोली चलने लगी। पुलिस छिपी हुई थी।

गोली चलने से ब्रह्मचारी जी के कई गोली लगीं। तमाम शरीर घायल हो गया। पं० गेंदालाल जी की आँख में एक छर्रा लगा। बाईं आँख जाती रही। कुछ आदमी जहर के कारण मरे, कुछ लोगी से मारे गए, इस प्रकार 80 आदमियों में से 25-30 जान से मारे गए। सब पकड़ कर ग्वालियर के किले में बन्द कर दिए गए।

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