जीवनी/आत्मकथा >> रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथारामप्रसाद बिस्मिल
|
6 पाठकों को प्रिय 198 पाठक हैं |
प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बिस्मिल जी की आत्मकथा
स्कूल अथवा कालिज से आकर थोड़ा-सा आराम करके एक घण्टा लिखने का काम करके खेलने के लिए जावे। मैदान में थोड़ा घूमे भी। घूमने के लिए चौक बाजार की गन्दी हवा में जाना ठीक नहीं। स्वच्छ वायु का सेवन करें। संध्या समय भी शौच अवश्य जावे। थोड़ा सा ध्यान करके हल्का सा भोजन कर लें। यदि हो सके तो रात्रि के समय केवल दुग्ध पीने का अभ्यास डाल लें या फल खा लिया करें। स्वप्नदोषादि व्याधियां केवल पेट के भारी होने से ही होती हैं। जिस दिन भोजन भली भांति नहीं पचता, उसी दिन विकार हो जाता है या मानसिक भावनाओं की अशुद्धता से निद्रा ठीक न आकर स्वप्नावस्था में वीर्यपात हो जाता है। रात्रि के समय साढ़े दस बजे तक पठन-पाठन करे, पुनः सो जावे। सदैव खुली हवा में सोना चाहिये। बहुत मुलायम और चिकने बिस्तर पर न सोवे। जहाँ तक हो सके, लकड़ी के तख्त पर कम्बल या गाढ़े कपड़े की चद्दर बिछाकर सोवे। अधिक पाठ न करना हो तो 9 या 10 बजे सो जावे। प्रातःकाल 3 या 4 बजे उठकर कुल्ला करके शीतल जलपान करे और शौच से निवृत हो पठन-पाठन करें। सूर्योदय के निकट फिर नित्य की भांति व्यायाम या भ्रमण करें। सब व्यायामों में दण्ड-बैठक सर्वोत्तम है। जहाँ जी चाहा, व्यायाम कर लिया। यदि हो सके तो प्रोफेसर राममूर्ति की विधि से दण्ड-बैठक करें। प्रोफेसर साहब की विधि विद्यार्थियों के लिए लाभदायक है। थोड़े समय में ही पर्याप्त परिश्रम हो जाता है। दण्ड-बैठक के अलावा शीर्षासन और पद्मासन का भी अभ्यास करना चाहिए और अपने कमरे में वीरों और महात्माओं के चित्र रखने चाहियें।
|