जीवनी/आत्मकथा >> रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथारामप्रसाद बिस्मिल
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प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बिस्मिल जी की आत्मकथा
कालिज के एक एम.ए. के विद्यार्थी ने इस प्रबन्ध का विरोध करते हुए कहा कि लोकमान्य का स्वागत अवश्य होना चाहिए। मैंने भी इस विद्यार्थी के कथन में सहयोग दिया। इसी प्रकार कई नवयुवकों ने निश्चथय किया कि जैसे ही लोकमान्य स्पेशल से उतरें, उन्हें घेरकर गाड़ी में बिठा लिया जाए और सवारी निकाली जाए।
स्पेशल आने पर लोकमान्य सबसे पहले उतरे। स्वागतकारिणी के सदस्यों ने कांग्रेस के स्वयंसेवकों का घेरा बनाकर लोकमान्य को मोटर में जा बिठाया। मैं तथा एक एम.ए. का विद्यार्थी मोटर के आगे लेट गए। सब कुछ समझाया गया, मगर किसी की एक न सुनी। हम लोगों की देखादेखी और कई नवयुवक भी मोटर के सामने आकर बैठ गए। उस समय मेरे उत्साह का यह हाल था कि मुँह से बात न निकलती थी, केवल रोता था और कहता था, मोटर मेरे ऊपर से निकाल ले जाओ। स्वागतकारिणी के सदस्यों ने कांग्रेस के प्रधान को ले जाने वाली गाड़ी मांगी, उन्होंने स्वीकार न किया। एक नवयुवक ने मोटर का टायर काट दिया। लोकमान्यजी बहुत कुछ समझाते किन्तु वहाँ सुनता कौन? एक किराये की गाड़ी से घोड़े खोलकर लोकमान्य के पैरों पर सिर रख उन्हें उसमें बिठाया और सबने मिलकर हाथों से गाड़ी खींचनी शुरू की। इस प्रकार लोकमान्य का इस धूमधाम से स्वागत हुआ कि किसी नेता की उतने जोरों से सवारी न निकाली गई।
लोगों के उत्साह का यह हाल था कि कहते थे कि एक बार गाड़ी में हाथ लगा लेने दो, जीवन सफल हो जाए। लोकमान्य पर फूलों की जो वर्षा की जाती थी, उसमें से जो फूल नीचे गिर जाते थे उन्हें उठाकर लोग पल्ले में बाँध लेते थे। जिस स्थान पर लोकमान्य के पैर पड़ते, वहां की धूल सबके माथे पर दिखाई देती। कुछ उस धूल को भी अपने रूमाल में बांध लेते थे। इस स्वागत से माडरेटों की बड़ी भद्द हुई।
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