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जीवनी/आत्मकथा >> रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा

रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा

रामप्रसाद बिस्मिल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :216
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9718
आईएसबीएन :9781613012826

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प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बिस्मिल जी की आत्मकथा

कुछ समय पश्चात् कारखानों की लिस्टें लेकर तीन-चार सदस्य मिलकर गये। खूब जांच-खोज की। किसी प्रकार रियासत की पुलिस को पता चल गया। एक खुफिया पुलिस वाला मुझे मिला, उसने कई हथियार दिलाने का वायदा किया, और वह पुलिस इंस्पेक्टर के घर ले गया। दैवात् उस समय पुलिस इंस्पेक्टर घर मौजूद न थे। उनके द्वार पर एक पुलिस का सिपाही था, जिसे मैं भली-भाँति जानता था। मुहल्ले में खुफिया पुलिस वालों की आँख बचाकर पूछा कि अमुक घर किसका है? मालूम हुआ पुलिस इंस्पेक्टर का ! मैं इतस्ततः करके जैसे-जैसे निकल आया और अति शीघ्र अपने टहरने का स्थान बदला। उस समय हम लोगों के पास दो राइफलें, चार रिवाल्वर तथा दो पिस्तौल खरीदे हुए मौजूद थे। किसी प्रकार उस खुफिया पुलिस वाले को एक कारीगर से जहाँ पर कि हम लोग अपने हथियारों की मरम्मत कराते थे, मालूम हुआ कि हम में से एक व्यक्ति  उसी दिन जाने वाला था, उसने चारों ओर स्टेशन पर तार दिलवाए। रेलगाड़ियों की तलाशी ली गई। पर पुलिस की असावधानी के कारण हम बाल-बाल बच गए।

रुपये की चपत बुरी होती है। एक पुलिस सुपरिटेण्डेंट के पास एक राइफल थी। मालूम हुआ वह बेचते हैं। हम लोग पहुँचे। अपने आप को रियासत का रहने वाला बतलाया। उन्होंने निश्चपय करने के लिए बहुत से प्रश्नय पूछे, क्योंकि हम लोग लड़के तो थे ही। पुलिस सुपरिटेण्डेंट पेंशनयाफ्ता, जाति के मुसलमान थे। हमारी बातों पर उन्हें पूर्ण विश्वापस न हुआ। कहा कि अपने थानेदार से लिखा लाओ कि वह तुम्हें जानता है। मैं गया। जिस स्थान का रहने वाला बताया था, वहाँ के थानेदार का नाम मालूम किया, और एक-दो जमींदारों के नाम मालूम करके एक पत्र लिखा कि मैं उस स्थान के रहने वाले अमुक जमींदार का पुत्र हूँ और वे लोग मुझे भली-भाँति जानते हैं। उसी पत्र पर जमींदारों के हिन्दी में और पुलिस दारोगा के अंग्रेजी में हस्ताक्षर बना, पत्र ले जा कर पुलिस कप्ताान साहब को दिया। बड़े गौर से देखने के बाद वह बोले, "मैं थानेदार से दर्याफ्त कर लूं। तुम्हें भी थाने चलकर इत्तला देनी होगी कि राइफल खरीद रहे हैं।" हम लोगों ने कहा कि हमने आपके इत्मीनान के लिए इतनी मुसीबत झेली, दस-बारह रुपये खर्च किए, अगर अब भी इत्मीनान न हो तो मजबूरी है। हम पुलिस में न जायेंगे, राइफल के दाम लिस्ट में 150 रुपये लिखे थे, वह 250 रुपये मांगते थे, साथ में दो सौ कारतूस भी दे रहे थे। कारतूस भरने का सामान भी देते थे, जो लगभग 50 रुपये का होता है, इस प्रकार पुरानी राइफल के नई के समान दाम माँगते थे। हम लोग भी 250 रुपये देते थे। पुलिस कप्तागन ने भी विचारा कि पूरे दाम मिल रहे हैं। स्वयं वृद्ध हो चुके थे। कोई पुत्र भी न था। अतएव 250 रुपये लेकर राइफल दे दी। पुलिस में कुछ पूछने न गए।

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