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जीवनी/आत्मकथा >> रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा

रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा

रामप्रसाद बिस्मिल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :216
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9718
आईएसबीएन :9781613012826

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प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बिस्मिल जी की आत्मकथा



गार्हस्थ जीवन


विवाह हो जाने के पश्चादत पिताजी म्युनिसिपैलिटी में पन्द्रह रुपये मासिक वेतन पर नौकर हो गए। उन्होंने कोई बड़ी शिक्षा प्राप्तो न की थी। पिताजी को यह नौकरी पसन्द न आई। उन्होंने एक-दो साल के बाद नौकरी छोड़कर स्वतन्त्र व्यवसाय आरम्भ करने का प्रयत्नो किया और कचहरी में सरकारी स्टाम्प बेचने लगे। उनके जीवन का अधिक भाग इसी व्यवसाय में व्यतीत हुआ। साधारण श्रेणी के गृहस्थ बनकर उन्होंने इसी व्यवसाय द्वारा अपनी सन्तानों को शिक्षा दी, अपने कुटुम्ब का पालन किया और अपने मुहल्ले के गणमान्य व्यक्ति्यों में गिने जाने लगे। वह रुपये का लेन-देन भी करते थे। उन्होंने तीन बैलगाड़ियां भी बनाईं थीं, जो किराये पर चला करतीं थीं। पिताजी को व्यायाम से प्रेम था। उनका शरीर बड़ा सुदृढ़ व सुडौल था। वह नियम पूर्वक अखाड़े में कुश्ती लड़ा करते थे।

पिताजी के गृह में एक पुत्र उत्पन्न हुआ, किन्तु वह मर गया। उसके एक साल बाद लेखक (मैं) ने ज्येष्ठम शुक्ल पक्ष 11 सम्वत् 1954 विक्रमी को जन्म लिया। बड़े प्रयत्नोंम से मानता मानकर अनेक गंडे, ताबीज तथा कवचों द्वारा श्री दादाजी ने इस शरीर की रक्षा के लिए प्रयत्नी किया। स्यात् बालकों का रोग गृह में प्रवेश कर गया था। अतःएव जन्म लेने के एक या दो मास पश्चापत् ही मेरे शरीर की अवस्था भी पहले बालक जैसी होने लगी। किसी ने बताया कि सफेद खरगोश को मेरे शरीर पर घुमाकर जमीन पर छोड़ दिया जाय, यदि बीमारी होगी तो खरगोश तुरन्त मर जायेगा। कहते हैं हुआ भी ऐसा ही। एक सफेद खरगोश मेरे शरीर पर से उतारकर जैसे ही जमीन पर छोड़ा गया, वैसे ही उसने तीन-चार चक्कर काटे और मर गया। मेरे विचार में किसी अंश में यह सम्भव भी है, क्योंकि औषधि तीन प्रकार की होती हैं - (1) दैविक (2) मानुषिक, (3) पैशाचिक। पैशाचिक औषधियों में अनेक प्रकार के पशु या पक्षियों के मांस अथवा रुधिर का व्यवहार होता है, जिनका उपयोग वैद्यक के ग्रन्थों में पाया जाता है। इसमें से एक प्रयोग बड़ा ही कौतुहलोत्पादक तथा आश्च र्यजनक यह है कि जिस बच्चे को जभोखे (सूखा) की बीमारी हो गई हो, यदि उसके सामने चमगादड़ चीरकर लाया जाए तो एक दो मास का बालक चमगादड़ को पकड़कर उसका खून चूस लेगा और बीमारी जाती रहेगी। यह बड़ी उपयोगी औषधि है और एक महात्मा की बतलाई हुई है।

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