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जीवनी/आत्मकथा >> रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा

रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा

रामप्रसाद बिस्मिल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :216
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9718
आईएसबीएन :9781613012826

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प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बिस्मिल जी की आत्मकथा

मैंने यथाशक्तिक पूर्ण प्रबन्ध किया था कि जब तक कोई बन्दूक लेकर सामना करने न आये, या मुकाबले में गोली न चले तब तक किसी आदमी पर फायर न होने पाए। मैं नर-हत्या कराके डकैती को भीषण रूप देना नहीं चाहता था। फिर भी मेरा कहा न मानकर अपना काम छोड़ गोली चला देने का यह परिणाम हुआ ! गोली चलाने की ड्यूटी जिनको मैंने दी थी वे बड़े दक्ष तथा अनुभवी मनुष्य थे, उनसे भूल होना असम्भव है। उन लोगों को मैंने देखा कि वे अपने स्थान से पांच मिनट बाद फायर करते थे। यही मेरा आदेश था।

सन्दूक तोड़ तीन गठरियों में थैलियां बांधी। सबसे कई बार कहा, देख लो कोई सामान रह तो नहीं गया, इस पर भी एक महाशय चद्‌दर डाल आए ! रास्ते में थैलियों से रुपया निकालकर गठरी बांधी और उसी समय लखनऊ शहर में जा पहुंचे। किसी ने पूछा भी नहीं, कौन हो, कहाँ से आये हो? इस प्रकार दस आदमियों ने एक गाड़ी को रोककर लूट लिया। उस गाड़ी में चौदह मनुष्य ऐसे थे, जिनके पास बन्दूकें या राइफलें थीं। दो अंग्रेज सशस्त्रस फौजी जवान भी थे, पर सब शान्त रहे। ड्राइवर महाशय तथा एक इंजीनियर महाशय दोनों का बुरा हाल था। वे दोनों अंग्रेज थे। ड्राइवर महाशय इंजन में लेटे रहे। इंजीनियर महाशय पाखाने में जा छुपे ! हमने कह दिया था कि मुसाफिरों से न बोलेंगे। सरकार का माल लूटेंगे। इस कारण मुसाफिर भी शान्तिपूर्वक बैठे रहे। समझे तीस-चालीस आदमियों ने गाड़ी को चारों ओर से घेर लिया है। केवल दस युवकों ने इतना बड़ा आतंक फैला दिया। साधारणतः इस बात पर बहुत से मनुष्य विश्वा स करने में भी संकोच करेंगे कि दस नवयुवकों ने गाड़ी खड़ी करके लूट ली। जो भी हो, वास्तव में बात यही थी। इन दस कार्यकर्त्ताओं में अधिकतर तो ऐसे थे जो आयु में सिर्फ लगभग बाईस वर्ष के होंगे और जो शरीर से बड़े पुष्टह न थे।

इस सफलता को देखकर मेरा साहस बढ़ गया। मेरा जो विचार था, वह अक्षरशः सत्य सिद्ध हुआ। पुलिस वालों की वीरता का मुझे अन्दाजा था। इस घटना से भविष्य के कार्य की बहुत बड़ी आशा बंध गई। नवयुवकों में भी उत्साह बढ़ गया। जितना कर्जा था निपटा दिया। अस्त्रों  की खरीद के लिए लगभग एक हजार रुपये भेज दिये। प्रत्येक केन्द्र के कार्यकर्त्ताओं को यथास्थान भेजकर दूसरे प्रान्तों में भी कार्य-विस्तार करने का निर्णय करके कुछ प्रबन्ध किया।

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