लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा

रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा

रामप्रसाद बिस्मिल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :216
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9718
आईएसबीएन :9781613012826

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

198 पाठक हैं

प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बिस्मिल जी की आत्मकथा

मेरे पश्चाताप पर जजों को विश्वास न हुआ और उन्होंने अपनी धारणा को इस प्रकार प्रकट किया कि यदि यह (रामप्रसाद) छूट गया तो फिर वही कार्य करेगा। बुद्धि की प्रखरता तथा समझ पर प्रकाश डालते हुए मुझे 'निर्दयी हत्यारे' के नाम से विभूषित किया गया। लेखनी उनके हाथ में थी, जो चाहे सो लिखते, किन्तु काकोरी षड्यन्त्र का चीफ कोर्ट का आद्योपान्त फैसला पढ़ने से भलीभांति विदित होता है कि मुझे मृत्युदण्ड किस ख्याल से दिया गया। यह निश्चतय किया गया कि रामप्रसाद ने सेशन जज के विरुद्ध अपशब्द कहे हैं, खुफिया विभाग के कार्यकर्त्ताओं पर लांछन लगाये हैं अर्थात् अभियोग के समय जो अन्याय होता था, उसके विरुद्ध आवाज उठाई है, अतएव रामप्रसाद सब से बड़ा गुस्ताख मुलजिम है। अब माफी चाहे वह किसी रूप में मांगे, नहीं दी जा सकती।

चीफ कोर्ट से अपील खारिज हो जाने के बाद यथानियम प्रान्तीय गवर्नर तथा फिर वाइसराय के पास दया प्रार्थना की गई। रामप्रसाद 'बिस्मिल', राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रोशनसिंह तथा अशफाक‌उल्ला खां के मृत्यु-दण्ड को बदलकर अन्य दूसरी सजा देने की सिफारिश करते हुए संयुक्त- प्रान्त की कौंसिल के लगभग सभी निर्वाचित हुए मेम्बरों ने हस्ताक्षर करके निवेदन पत्र दिया।

मेरे पिता ने ढ़ाई सौ रईस, आनरेरी मजिस्ट्रेट तथा जमींदारों के हस्ताक्षर से एक अलग प्रार्थना पत्र भेजा, किन्तु श्रीमान सर विलियम मेरिस की सरकार ने एक न सुनी ! उसी समय लेजिस्लेटिव असेम्बली तथा कौंसिल ऑफ स्टेट के 78 सदस्यों ने हस्ताक्षर करके वाइसराय के पास प्रार्थनापत्र भेजा कि काकोरी षड्यन्त्र के मृत्युदण्ड पाए हुओं को मृत्युदण्ड की सजा बदल कर दूसरी सजा कर दी जाए, क्योंकि दौरा जज ने सिफारिश की है कि यदि ये लोग पश्चायताप करें तो सरकार दण्ड कम दे। चारों अभियुक्तों  ने पश्चापताप प्रकट कर दिया है। किन्तु वाइसराय महोदय ने भी एक न सुनी।

इस विषय में माननीय पं० मदनमोहन मालवीय जी ने तथा असेम्बली के कुछ अन्य सदस्यों ने वाइसराय से मिलकर भी प्रयत्नी किया था कि मृत्युदण्ड न दिया जाए। इतना होने पर सबको आशा थी कि वाइसराय महोदय अवश्यमेव मृत्युदण्ड की आज्ञा रद्द कर देंगे। इसी हालत में चुपचाप विजयदशमी से दो दिन पहले जेलों को तार भेज दिए गए कि दया नहीं होगी सब की फांसी की तारीख मुकर्रर हो गई।

जब मुझे सुपरिण्टेण्डेंट जेल ने तार सुनाया, तो मैंने भी कह दिया था कि आप अपना काम कीजिए। किन्तु सुपरिण्टेण्डेंट जेल के अधिक कहने पर कि एक तार दया-प्रार्थना का सम्राट के पास भेज दो, क्योंकि यह उन्होंने एक नियम सा बना रखा है कि प्रत्येक फांसी के कैदी की ओर से जिस की भिक्षा की अर्जी वाइसराय के यहां खारिज हो जाती है, वह एक तार सम्राट के नाम से प्रान्तीय सरकार के पास अवश्य भेजते हैं। कोई दूसरा जेल सुपरिण्टेण्डेंट ऐसा नहीं करता।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book