लोगों की राय

उपन्यास >> श्रीकान्त

श्रीकान्त

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :598
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9719
आईएसबीएन :9781613014479

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

337 पाठक हैं

शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास


मैंने कुछ कहा नहीं। प्रतिवाद करके किसी के भ्रम को भंग करने जैसी अवस्था मेरी नहीं थी। आछन्न-अभिभूत की तरह चुपचाप चलने लगा।

कुछ दूर चलने के बाद रतन ने पूछा, “आज कुछ देखा बाबूजी?”

मैं बोला, “नहीं।”

मेरे इस संक्षिप्त उत्तर से रतन क्षुब्ध होकर बोला, “हमारे आने से आप क्या नाराज हो गये, बाबूजी? किन्तु यदि आप माँ का रोना देखते...”

मैं चटपट बोल उठा, “नहीं रतन, मैं जरा भी नाराज नहीं हुआ।”

तम्बू के पास आ जाने पर चौकीदार अपने घर चला गया, गणेश और छट्टूलाल नौकरों के तम्बू में चले गये। रतन ने कहा, “माँ ने कहा था कि जाते समय एक बार दर्शन दे जाइएगा।”

मैं ठिठक कर खड़ा हो गया, आँखों के आगे साफ-साफ दिखाई पड़ा कि प्यारी दिए के सामने अधीर उत्सुकता और सजल नेत्रों से बैठी-बैठी प्रतीक्षा कर रही है और मेरा सारा मन उन्मत्त उर्ध्वन श्वासें भरता हुआ उस ओर दौड़ा जा रहा है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book