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सिंहासन बत्तीसी

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :101
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9721
आईएसबीएन :9781613012284

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सिंहासन बत्तीसी 32 लोक कथाओं का ऐसा संग्रह है, जिसमें विक्रमादित्य के सिंहासन में लगी हुई 32 पुतलियाँ राजा के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।

बाइसवीं पुतली अनुरोधवती

एक दिन राजा विक्रमादित्य ने अपने दीवान से पूछा कि आदमी बुद्धि अपने कर्म से पाता है या अपने माता-पिता से?

दीवान ने कहा, “महाराज! पूर्वजन्म में जो जैसा कर्म करता है, विधाता वैसा ही उसके भाग्य में लिख देता है।”

राजा ने कहा, “यह तुमने क्या कहा? जन्म लेते ही लड़का माता-पिता से सीखता है।”

दीवान बोला, “नहीं महाराज! कर्म का लिखा ही होता।”

इस पर राजा ने दूर बियावान में एक महल बनवाया और उसमें अपने, दीवान के, ब्राह्मण के और कोतवाल के बेटे को जन्मते ही गूंगी, बहरी और अंधी दाइयां देकर उस महल में भिजवा दिया। बारह बरस बाद उन्हें बुलाया। सबसे पहले उसने अपने बेटे से पूछा, "तुम्हारे क्या हाल हैं?"

राजकुमार ने हंसकर कहा, “आपके पुण्य से सब कुशल है।”

राजा ने खुश होकर मंत्री की तरफ देखा।

मंत्री ने कहा, “महाराज! यह सब कर्म का लिखा है।”

फिर राजा ने दीवान के बेटे को बुलाया और उससे वही सवाल किया।

उसने कहा, “महाराज! संसार में जो आता है, वह जाता भी है। सो कुशल कैसी?”

सुनकर राजा चुप हो गया। थोड़ी देर बाद उसने कोतवाल के बेटे को बुलाया।

कुशल पूछने पर उसने कहा, “महाराज! कुशल कैसे हो? चोर चोरी करते हैं, बदनाम हम होते हैं।”

इसके बाद ब्राह्मण के बेटे की बारी आयी।

उसने कहा, “महाराज! दिन-दिन उमर घटती जाती है। सो कुशल कैसी?”

चारों की बातें सुनकर राजा समझ गया कि दीवान का कहना ठीक था। महल में कोई सिखाने वाला नहीं था। फिर भी वे चारों सीख गये तो इसमें पूर्वजन्म के कर्मों का ही हाथ रहा होगा। राजा ने दीवान को अपने सब सरदारों का सरदार बनाया और चारों लड़कों के विवाह करके उन्हें बहुत-सा धन दिया।

पुतली बोली, “राजा होकर भी जो अपनी बात पर हठ न करे और सही बात को माने, वहीं सिंहासन पर पांव रक्खे।”

अगले दिन तेईसवीं पुतली ने राजा को रोका और अपनी कहानी सुनाई।

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