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कहानी संग्रह >> सिंहासन बत्तीसी

सिंहासन बत्तीसी

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :101
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9721
आईएसबीएन :9781613012284

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सिंहासन बत्तीसी 32 लोक कथाओं का ऐसा संग्रह है, जिसमें विक्रमादित्य के सिंहासन में लगी हुई 32 पुतलियाँ राजा के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।

आठवीं पुतली पुष्पावती

एक दिन राजा विक्रमादित्य के दरबार में एक बढ़ई आया। उसने राजा को काठ का एक घोड़ा दिखाया और कहा कि यह न कुछ खाता है, न पीता है और जहां चाहो, वहां ले जाता है। राजा ने उसी समय दीवान को बुलाकर एक लाख रुपया उसे देने को कहा। दीवान बोला कि यह तो काठ का है और इतने दाम का नहीं है।

राजा ने चिढ़कर कहा, “दो लाख रुपये दो। दीवान चुप रह गया। रुपये दे दिये। रुपये लेकर बढ़ई चलता बना, पर चलते चलते कह गया कि इस घोड़े में ऐड़ लगाना कोड़ा मत मारना।”

एक दिन राजा ने उस पर सवारी की। पर वह बढ़ई की बात भूल गया और उसने घोड़े पर कोड़ा जमा दिया। कोड़ा लगना था कि घोड़ा हवा से बातें करने लगा और समुद्र पार ले जाकर उसे जंगल में एक पेड़ पर गिरा दिया। लुढ़कता हुआ राजा नीचे गिरा मुर्दा जैसा हो गया। संभलने पर उठा और चलते-चलते एक ऐसे बीहड़ वन में पहुंचा कि निकलना मुश्किल हो गया। जैसे-तैसे वह वहां से निकला। दस दिन में सात कोस चलकर वह ऐसे घने जंगल में पहुंचा, जहां हाथ तक नहीं सूझता था। चारों तरफ शेर-चीते दहाड़ते थे। राजा घबराया। उसे रास्ता नहीं सूझता था। आखिर पंद्रह दिन भटकने के बाद एक ऐसी जगह पहुंचा जहां एक मकान था और उसके बाहर एक ऊंचा पेड़ और दो कुएं थे। पेड़ पर एक बंदरिया थी। वह कभी नीचे आती तो कभी ऊपर चढ़ती।

राजा पेड़ पर चढ़ गया और छिपकर सब हाल देखने लगा। दोपहर होने पर एक यती वहां आया। उसने बाई तरफ के कुएं से एक चुल्लू पानी लिया और उस बंदरिया पर छिड़क दिया। वह तुरन्त एक बड़ी ही सुन्दर स्त्री बन गई। यती पहरभर उसके साथ रहा, फिर दूसरे कुएं से पानी खींचकर उस पर डाला कि वह फिर बंदरिया बन गई। वह पेड़ पर जा चढ़ी और यती गुफा में चला गया।

राजा को यह देखकर बड़ा अचंभा हुआ। यती के जाने पर उसने भी ऐसा ही किया। पानी पड़ते ही बंदरिया सुन्दर स्त्री बन गई। राजा ने जब प्रेम से उसकी ओर देखा तो वह बोली, "हमारी तरफ ऐसे मत देखो। हम तपस्वी है। शाप दे देंगे तो तुम भस्म हो जाओंगे।"

राजा बोला, “मेरा नाम विक्रमादित्य है। मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है।”

राजा का नाम सुनते वह उनके चरणों में गिर पड़ी बोली, "हे महाराज! तुम अभी यहां से चले जाओ, नहीं तो यती आयगा और हम दोनों को शाप देकर भस्म कर देगा।"

राजा ने पूछा, “तुम कौन हो और इस यती के हाथ कैसे पड़ीं?”

वह बोली, “मेरा पिता कामदेव और मां पुष्पावती हैं। जब मैं बारह बरस की हुई तो मेरे मां-बाप ने मुझे एक काम करने को कहा। मैंने उसे नहीं किया। इस पर उन्होंने गुस्सा होकर मुझे इस यती को दे डाला। वह मुझे यहां ले आया और बंदरिया बनाकर रक्खा है। सच है, भाग्य के लिखे को कोई नहीं मिटा सकता।”

राजा ने कहा, “मैं तुम्हें साथ ले चलूंगा। इतना कहकर उसने दूसरे कुएं का पानी छिड़ककर उसे फिर बंदरिया बना दिया।”

अगले दिन वह यती आया। जब उसने बंदरिया को स्त्री बना लिया तो वह बोली, "मुझे कुछ प्रसाद दो।"

यती ने एक कमल का फूल दिया और कहा, “यह कभी कुम्हलायगा नहीं और रोज एक लाल देगा। इसे संभालकर रखना।”

यती के जाने पर राजा ने बंदरिया को स्त्री बना लिया। फिर अपने वीरों को बुलाया। वे आये और तख्त पर बिठाकर उन दोनों को ले चले। जब वे शहर के पास आये तो देखते हैं कि एक बड़ा सुन्दर लड़का खेल रहा है। राजा ने लड़के को कमल का फूल दे दिया। फूल लेकर लड़का अपने घर चला गया। राजा स्त्री को साथ लेकर अपने महल में आ गये।

अगले दिन कमल में एक लाल निकला। इस तरह हर दिन निकलते-निकलते बहुत से लाल इकट्ठे हो गये। एक दिन लड़के का बाप उन्हें बाज़ार में बेचने गया। तो कोतवाल ने उसे पकड़ लिया और राजा के पास ले गया। लड़के के बाप ने राजा को सब हाल ठीक-ठीक कह सुनाया। सुनकर राजा को कोतवाल पर बड़ा गुस्सा आया और उसने हुक्म दिया कि वह उस बेकसूर आदमी को एक लाख रुपया दे।

इ़तना कहकर पुतली बोली, “हे राजन्! जो विक्रमादित्य जैसा दानी और न्यायी हो, वही इस सिंहासन पर बैठ सकता है।”

राजा झुंझलाकर चुप रह गया। अगले दिन वह पक्का करके सिंहासन की तरफ बढ़ा कि मधुमालती नाम की नौवीं पुतली ने उसका रास्ता रोक लिया।

पुतली बोली, “हे राजन्! पहले मेरी बात सुनो।”

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