धर्म एवं दर्शन >> श्रीकनकधारा स्तोत्र श्रीकनकधारा स्तोत्रआदि शंकराचार्य
|
9 पाठकों को प्रिय 59 पाठक हैं |
लक्ष्मी आराधना के स्तोत्र
इष्टा विशिष्टमतयोऽपि
यया दयार्द्रदृष्टा
त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः॥ 9 ॥
विशिष्ट
बुद्धिवाले मनुष्य जिसके प्रीतिपात्र होकर उनकी दयादृष्टि के प्रभाव से
स्वर्गपद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, उन्हीं पद्मासना पद्मा की वह
विकसित कमल-गर्भके समान कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोवांच्छित पुष्टि प्रदान
करे ।।9।।
गीर्देवतेति
गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै॥ 10
॥
जो
सृष्टि-लीला के समय वाग्देवता (ब्रह्म-शक्ति) के रूप में स्थित होती हैं,
पालन-लीला करते समय भगवान गरुड़ध्वज की सुन्दरी पत्नी लक्ष्मी (या वैष्णवी
शक्ति) के रूप में विराजमान होती हैं तथा प्रलय-लीला के काल में शाकम्भरी
(भगवती दुर्गा) अथवा चन्द्रशेखरवल्लभा पार्वती (रुद्र-शक्ति) के रूप में
अवस्थित होती हैं, उन त्रिभुवन के एकमात्र गुरु भगवान नारायणकी नित्ययौवना
प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार है ।।10।।
|