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धर्म एवं दर्शन >> श्रीहनुमानचालीसा

श्रीहनुमानचालीसा

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :9
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9727
आईएसबीएन :9781613012208

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हनुमान स्तुति


लाय सजीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ।।11।।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ।।12।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।

अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ।।13।।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।

नारद सारद सहित अहीसा ।।14।।

यम कुबेर दिकपाल जहां ते ।

कवि कोबिद कहि सके कहां ते ।।15।।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।

राम मिलाय राजपद दीन्हा ।।16।।

तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना ।

लंकेश्वर भए सब जग जाना ।।17।।

जुग सहस्त्र योजन पर भानू ।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू ।।18।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।

जलधि लांघि गए अचरज नाहीं ।।19।।

दुर्गम काज जगत के जेते ।

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।।20।।

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