कहानी संग्रह >> वीर बालक वीर बालकहनुमानप्रसाद पोद्दार
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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ
वीर बालक रामसिंह
राठौर वीर अमरसिंह अपनी तेजस्विता के लिये प्रसिद्ध हैं। वे शाहजहाँ बादशाह के दरबार में एक ऊँचे पद पर थे। एक दिन बादशाह के साले सलावत खां ने उनका अपमान कर दिया। भरे दरबार में अमरसिंह ने सलावत खाँ का सिर काट फेंका। किसी की हिम्मत नहीं हुई कि अमरसिंह को रोके या उनसे कुछ कहे। मुसलमान दरबारी जान लेकर इधर-उधर भागने लगे। अमरसिंह अपने घर लौट आये।
अमरसिंह के साले का नाम था अर्जुन गौड़। वह बहुत लोभी और नीच स्वभाव का था। बादशाह ने उसे लालच दिया। उसने अमरसिंह को समझाया-बुझाया और धोखा देकर बादशाह के महल में ले गया। वहाँ जब अमरसिंह एक छोटे दरवाजे में होकर भीतर जा रहे थे, अर्जुन गौड़ ने पीछे से बार करके उन्हें मार दिया। बादशाह शाहजहाँ इस समाचार से बहुत प्रसन्न था। उसने अमरसिंह की लाश को किले की बुर्ज पर डलवा दिया। एक विख्यात वीर की लाश इस प्रकार चील-कौवे को खाने के लिये डाल दी गयी।
अमरसिंह की रानी ने समाचार सुना तो सती होने का निश्चय कर लिया, लेकिन पति की लाश के बिना वह सती कैसे होती। महल में जो थोड़े-बहुत राजपूत सैनिक थे, उनको उसने अपने पति की लाश लेने भेजा, किंतु बादशाह की सेना के आगे वे थोड़े-से वीर क्या कर सकते थे। रानी ने बहुत-से सरदारों से प्रार्थना की; परंतु कोई भी बादशाह से शत्रुता लेने का साहस नहीं कर सकता था। अन्त में रानी ने तलवार मँगायी और स्वयं अपने पति का शव लाने को तैयार हो गयी।
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