कहानी संग्रह >> वीर बालक वीर बालकहनुमानप्रसाद पोद्दार
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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ
वीर बालक पृथ्वीसिंह
दिल्ली के मुगल बादशाह औरंगजेब के यहाँ उसके शिकारी जंगल से पकड़कर एक बड़ा भारी शेर लाये थे। शेर लोहे के पींजडे में बन्द था और बार-बार दहाड़ रहा था। बादशाह कहता था- 'इससे बड़ा और भयानक शेर दूसरा नहीं मिल सकता।'
बादशाह के दरबारियों ने उसकी हाँ-में-हाँ मिलायी, लेकिन महाराज यशवन्त सिंह जी ने कहा- 'इससे भी अधिक शक्तिशाली शेर मेरे पास है।' बादशाह को बहुत क्रोध आया। उसने कहा- 'तुम अपने शेर को डससे लड़ने को छोड़ो। यदि तुम्हारा शेर हार गया तो तुम्हारा सिर काट लिया जायगा। यशवन्त सिंह ने बादशाह की यह बात स्वीकार कर ली।’
दूसरे दिन दिल्ली के किले के सामने के मैदान में लोहे के मोटे छड़ों का बड़ा भारी पींजडा दो शेरों की लडाई के लिये रखा गया। शेरों का युद्ध देखने बहुत बड़ी भीड़ वहाँ इकट्ठी हो गयी। औरंगजेब बादशाह भी ठीक समय पर आकर अपने सिंहासनपर बैठ गया। राजा यशवन्तसिंह अपने दस वर्ष के पुत्र पृध्वीसिंह के साथ आये। उन्हें देखकर बादशाह ने पूछा- 'आपका शेर कहाँ है?'
यशवन्तसिंह बोले- 'मैं अपना शेर अपने साथ लाया हूँ। आप लड़ाई आरम्भ होने की आज्ञा दीजिये।'
बादशाह की आज्ञा से वह जंगली शेर अपने पींजडे से लडाई के लिये बनाये गये बड़े पींजडे में छोड़ दिया गया। यशवन्तसिंह ने अपने पुत्र को उस पींजडे में घुस जाने को कहा। बादशाह और वहाँ के सब लोग हक्के-बक्के-से रह गये; किंतु दस वर्ष का बालक पृथ्वीसिंह पिता को प्रणाम करके हँसते-हँसते शेर के पींजडे में घुस गया।
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