कहानी संग्रह >> वीर बालक वीर बालकहनुमानप्रसाद पोद्दार
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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ
वीर असुरबालक बर्बरीक
महावीर पाण्डुनन्दन भीमसेन ने हिडिम्बा राक्षसी से विवाह किया था। उससे घटोत्कच नामक अतुल पराक्रमी पुत्र उनके हुआ था। घटोत्कच ने भगवान् श्रीकृष्ण के आदेश से भौमासुर के नगरपाल मुर दानव की परम सुन्दरी कन्या कामकटंकटा से विवाह किया। घटोत्कच को मुर-कन्या से बर्बरीक नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। राक्षसियाँ गर्भ धारण करते ही पुत्र प्रसव करती हैं और उनके बालक जन्मते ही युवक और बलवान् हो जाते हैं। बालक बर्बरीक जन्म से ही विनयी, धर्मात्मा एवं वीर था। उसे साथ लेकर घटोत्कच द्वारका गया और वहाँ उसने भगवान् श्रीकृष्ण के चरणों में पुत्र के साथ प्रणाम किया। हाथ जोड़कर बर्बरीक ने भगवान से प्रार्थना की- 'आदिदेव माधव! मैं मन, बुद्धि और चित्त की एकाग्रता से आपको प्रणाम करता हूँ। पुरुषोत्तम! संसार में जीव का कल्याण किस प्रकार होता है? कोई धर्म को कल्याणकारी बतलाते हैं, कोई दान को, कोई तप को, कोई धन को, कोई भोगों को तथा कोई मोक्ष को। प्रभो! इन सैकड़ों श्रेयों में से एक निश्चित श्रेय जो मेरे कुलके लिये हो, उसको आप मुझे उपदेश करें।'
भगवान ने कहा- 'बेटा! जो जिस कुल में एवं वर्ण में उत्पन्न हुआ है, उसके कल्याण का साधन उसी के अनुरूप होता है। ब्राह्मण के लिये तप, इन्द्रिय-संयम तथा स्वाध्याय कल्याणकारी है। क्षत्रिय के लिये प्रथम बल साध्य है; क्योंकि बल के द्वारा दुष्टों का दमन एवं साधुओं का रक्षण करने से उसका कल्याण होता है। वैश्य पशु-पालन, कृषि तथा व्यापार से धन एकत्र करके दान करने से कल्याण-भाजन होता है। शूद्र तीनों वर्णों की सेवा करके श्रेय का भागी बनता है। तुम क्षत्रियकुल में उत्पन्न हुए हो, अतएव पहले तुम अतुलनीय बल की प्राप्ति का उद्योग करो। भगवती शक्ति की कृपा से ही बल की प्राप्ति होती है, अत: तुम्हें शक्तिरूपा देवियों की आराधना करनी चाहिये।
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