कहानी संग्रह >> वीर बालक वीर बालकहनुमानप्रसाद पोद्दार
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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ
भीमसेन
अर्जुन की बात सुनकर हँस पड़े। उन्हें लगा कि अर्जुन को भ्रम हो गया है।
ठीक निर्णय कराने के लिये वे अर्जुन और श्रीकृष्ण के साथ पर्वत पर गये और
बर्बरीक के सिर से पूछा- 'बेटा! तुमने पूरा युद्ध देखा है, बताओ कि युद्ध
में कौरवों को किसने मारा है?'
बर्बरीक
ने कहा- 'मैंने तो शत्रुओं के साथ केवल एक पुरुष को युद्ध करते देखा है,
उसके बायीं ओर पाँच मुख थे और दस हाथ थे, जिनमें त्रिशूल आदि वह धारण
किये
था। दाहिनी ओर एक मुख और चार भुजाएँ थीं, जिनमें चक्र आदि अस्त्र-शस्त्र
थे। बायीं ओर उसके जटाएँ थीं और ललाट पर चन्द्रमा शोभित हो रहे थे, अंगों
में भस्म लगी थी। दाहिनी ओर मस्तक पर मुकुट झलमला रहा था, अंगों में
चन्दन
लगा था और कण्ठ में कौस्तुभमणि शोभा दे रहा था। उस पुरुष को छोड़कर
कौरव-सेना का नाश करनेवाले दूसरे किसी पुरुष को मैंने नहीं देखा।'
बर्बरीक
के ऐसा कहने पर आकाश से पुष्पों की वर्षा होने लगी। भीमसेन लज्जित होकर
भगवान से क्षमा माँगने लगे। भगवान् तो क्षमा के समुद्र हैं। उन्होंने
हँसकर भीमसेन को गले लगा लिया।
भगवान ने बर्बरीक के सिर
के पास जाकर कहा- 'तुमको इस क्षेत्र का त्याग नहीं करना चाहिये।'
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