कहानी संग्रह >> वीर बालक वीर बालकहनुमानप्रसाद पोद्दार
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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ
उधर
अयोध्या में भगवान् श्रीराम ने अश्वमेध-यज्ञ की दीक्षा ली। विधिपूर्वक
पूजा करके श्यामकर्ण अश्व छोड़ा गया। बड़ी भारी सेना के साथ राजकुमार
पुष्कल
तथा सेनापति कालजित् के साथ शत्रुघ्नजी उस अश्व की रक्षा में चले।
श्रीहनुमानजी तथा वानरराज सुग्रीव भी वानर एवं रीछों की सेना लेकर
शत्रुघ्नजी के साथ चल रहे थे। वह अश्व अपने मन से जहाँ चाहता था वहाँ
जाता
था। सेना उससे कुछ पीछे रहकर चलती थी, जिसमें घोड़े को कोई असुविधा न हो।
अनेक नरेशों ने स्वयं शत्रुघ्नजी को कर दिया, कुछ ने समझाने-बुझाने पर कर
देना स्वीकार कर लिया। कहीं-कहीं संग्राम भी करना पड़ा। इस प्रकार सर्वत्र
विजय करते हुए वह यज्ञ का अश्व घूमता हुआ महर्षि वाल्मीकि के तपोवन के
पास
वन में पहुँचा।
कुमार
लव उस समय मुनिकुमारों के साथ वन में खेल रहे थे। मणिजटित स्वर्ण के
आभूषणोंसे सजे उस परम सुन्दर घोड़े को देखकर सब बालक उसके समीप आ गये। बड़े
स्पष्ट तथा सुन्दर अक्षरों में लिखा हुआ एक घोषणा पत्र अश्व के मस्तक पर
बँधा था। उस घोषणापत्र में बताया गया था कि 'यह अयोध्याके चक्रवर्ती
सम्राट महाराज श्रीराम के यज्ञ का अश्व है और परम पराक्रमी शत्रुघ्नकुमार
इसकी रक्षा कर रहे हैं। जिस देशसे अश्व निकल जायगा, वह देश जीता हुआ समझा
जायगा। जिस किसी क्षत्रिय में साहस हो और जो अयोध्या के महाराज को अपना
सम्राट न मानना चाहे, वह अश्व को पकड़े और युद्ध करे।' इस घोषणा पत्र को
पढ़कर लव को क्रोध आ गया। उन्होंने घोड़े को पकड़कर एक वृक्ष में बाँध दिया
और स्वयं धनुष चढ़ाकर युद्ध के लिये खड़े हो गये। साथ के मुनिबालकों ने
पहले
तो उन्हें रोकने का प्रयत्न किया, किंतु जब वे न माने तब युद्ध देखने के
लिये वे सब कुछ दूर खड़े हो गये।
घोडे
के साथ चलनेवाले रक्षकों ने देखा कि एक बालक ने अश्व को बाँध दिया है।
उनके पूछने पर लव ने कहा- 'मैंने इस घोड़े को बाँधा है। जो इसे खोलने का
प्रयत्न करेगा उस पर मेरे भाई कुश अवश्य क्रोध करेंगे।' रक्षकों ने समझा
कि यह बालक तो यों ही बचपन की बातें करता है। वे घोड़े को खोलने के लिये
आगे बढ़े। लव ने देखा कि ये लोग मेरा कहना नहीं मानते तो बाण मारकर उन
सबकी भुजाएँ उन्होंने काट दीं। बेचारे रक्षक वहाँ से भागे और उन्होंने
शत्रुघ्नजी को अश्व के बाँधे जाने की सूचना दी।
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