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वीर बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9731
आईएसबीएन :9781613012840

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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ


आप क्या सोचते हैं कि रानी पद्मिनी पालकी में बैठकर यवन बादशाह के पास आयी थीं? पालकी में रानी बना स्त्रीवेश में छिपा अपने अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित रानी का बारह वर्ष का सुन्दर भानजा बालक बादल वहाँ आया था। दूसरी पालकियों में भी राजपूत सरदार बैठे थे और पालकी उठाने वाले कहारों के वेश में भी राजपूत योद्धा ही थे। राणा को मुक्त करके घोड़े पर बैठाकर कुछ सैनिकों के साथ दुर्ग की ओर उन्होंने भेज दिया और स्वयं अलाउद्दीन की सेनापर शस्त्र लेकर टूट पड़े। गोरा इस सेना का सेनापतित्व कर रहे थे। बादल ने इस युद्ध में अद्भुत वीरता दिखलायी। लेकिन मुट्ठी भर राजपूत समुद्र के समान विशाल शाही सेना से कब तक लड़ते। गोरा रणभूमि में काम आये। दोनों हाथों से तलवार चलाकर यवन-सैनिकों को गाजर-मूली की भांति काटता हुआ बालक बादल दुर्ग में पहुँच गया। अलाउद्दीन चाहता था कि इस युद्ध का समाचार दुर्ग में न पहुँचे। अचानक आक्रमण करके वह पद्मिनी को पकड़कर दिल्ली ले जाना चाहता था; किंतु उस बारह बर्ष के बालक ने उसकी एक भी चाल चलने नहीं दी। दुर्ग में समाचार पहुँचते ही राजपूत वीरों ने केसरिया बाना पहिना और निकल पड़े धर्म एवं मातृ-भूमि पर मस्तक चढ़ाने! बड़ी कठिनाई से अलाउद्दीन को विजय प्राप्त हुई। अपनी अधिकांश सेना की बलि देकर जब वह चित्तौड़ के पवित्र दुर्ग में घुसा, तब वहाँ बहुत बड़ी चिता धायँ-धायँ करके जल रही थी। राजघराने की देवियाँ पापी पुरुष के स्पर्श से बचने के लिये अग्नि में प्रवेश करके स्वर्ग पहुँच चुकी थीं। अलाउद्दीन ने अपना सिर पीट लिया। भारत की वह गौरवमयी दिव्यभूमि सतियों के तेज के साथ वीर बालक बादल की शूरता एवं बलिदान से नित्य उज्ज्वल है।

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