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वीर बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9731
आईएसबीएन :9781613012840

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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ


इसी समय अमरसिंह का भतीजा रामसिंह नंगी तलवार लिये वहाँ आया। उसने कहा- 'चाची! तुम अभी रुको। मैं जाता हूँ या तो चाचा की लाश ले आऊँगा या मेरी लाश भी वहीं गिरेगी।’

रामसिंह अमरसिंह के बड़े भाई जसवन्त सिंह का पुत्र था। वह अभी नवयुवक ही था। सती रानी ने उसे आशीर्वाद दिया। पंद्रह वर्ष का वह राजपूत वीर घोड़े पर सवार हुआ और घोड़ा दौड़ाता सीधे बादशाह के महल में पहुँच गया। महल का फाटक खुला था। द्वारपाल रामसिंह को पहचान भी नहीं पाये कि वह भीतर चला गया, लेकिन बुर्ज के नीचे पहुँचते-पहुँचते सैकड़ों मुसलमान सैनिकों ने उसे घेर लिया। रामसिंह को अपने मरने-जीने की चिन्ता नहीं थी। उसने मुख में घोड़े की लगाम पकड़ रखी थी। दोनों हाथों से तलवार चला रहा था। उसका पूरा शरीर रक्त से लथपथ हो रहा था। सैकड़ों नहीं, हजारों मुसलमान सैनिक थे। उनकी लाशें गिरती थीं और उन लाशों पर से रामसिंह आगे बढ़ता जा रहा था। वह मुर्दों की छाती पर होता बुर्ज पर चढ़ गया। अमरसिंह की लाश उठाकर उसने कंधे पर रखी और एक हाथ से तलवार चलाता नीचे उतर आया। घोड़े पर लाश को रखकर वह बैठ गया। बुर्ज के नीचे मुसलमानों की और सेना आने से पहले ही रामसिंह का घोडा किले के फाटक के बाहर पहुँच चुका था।

रानी अपने भतीजे का रास्ता देखती खड़ी थीं। पति की लाश पाकर उन्होंने चिता बनायी। चिता पर बैठी सती ने रामसिंह को आशीर्वाद दिया- 'बेटा! गौ, ब्राह्मण, धर्म और सती स्त्री की रक्षा के लिये जो संकट उठाता है, भगवान् उस पर प्रसन्न होते हैं। तूने आज मेरी प्रतिष्ठा रखी है। तेरा यश संसार में सदा अमर रहेगा।’

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