कहानी संग्रह >> वीर बालक वीर बालकहनुमानप्रसाद पोद्दार
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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ
इसके
पश्चात् शत्रुघ्नजी युद्ध करने आये। घोर संग्राम के पश्चात् लव ने बाण
मारकर शत्रुघ्नजी को भी मूर्च्छित कर दिया। शत्रुघ्न को मूर्च्छित देखकर
सुरथ आदि नरेश लव पर टूट पड़े। अकेले बालक लव बहुत बड़े-बड़े अनेकों
महारथियों से संग्राम कर रहे थे। शत्रुघ्नजी की भी मूर्च्छा कुछ देर में
दूर हो गयी। अब इस बार शत्रुघ्नजी ने भगवान् श्रीरामका दिया गया बाण धनुष
पर चढ़ाया, जिससे उन्होंने लवणासुर को मारा था। उस तेजोमय बाण के छाती में
लगने से लव मूर्च्छित होकर गिर पड़े। मूर्च्छित लव को रथपर रखकर
शत्रुघ्नजी
अयोध्या ले जाने का विचार करने लगे। कुछ मुनिकुमार दूर खड़े युद्ध देख रहे
थे, उन्होंने दौड़कर महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में श्रीजानकीजी को समाचार
दिया- 'माँ! तुम्हारे छोटे बेटे ने किसी राजा के घोड़े को बाँध
दिया
था। उस राजा के सैनिकों ने उससे युद्ध किया। अब लव मूर्च्छित हो गया है
और
वे लोग उसे पकड़कर ले जाना चाहते हैं। बालकों की बातें सुनकर माता जानकी
दुःखित हो गयीं। उनके नेत्रों से आँसू गिरने लगे। उसी समय वहाँ कुमार कुश
आये। उन्होंने माता से तथा मुनिकुमारों से पूछकर सब बातें जान लीं। अपने
भाई को मूर्च्छित हुआ सुनकर वे क्रोध में भर गये। माता के चरणों में
प्रणाम करके उन्होंने आज्ञा ली और धनुष चढ़ाकर युद्धभूमि की ओर दौड़ पड़े।
लव
उस समय रथ पर पड़े थे; किंतु उनकी मूर्च्छा दूर हो गयी थी। दूर ही से अपने
भाई को आते उन्होंने देख लिया और वे कूदकर रथ से नीचे आ गये। अब कुश ने
पूर्व की ओर से रणभूमि में खड़े योद्धाओ को मारना प्रारम्भ किया और लव ने
पश्चिम से। क्रोध में भरे दोनों बालकों की मार से वहाँ की युद्धभूमि
लाशों
से पट गयी। बड़े-बड़े योद्धा भागकर प्राण बचाने का प्रयत्न करने लगे। जो भी
युद्ध करने आता, उसका शरीर कुछ क्षणों में बाणों से छलनी हो जाता था।
हनुमानजी और अंगद को बाण मार-मारकर लव तथा कुश बार-बार आकाश में फेंकने
लगे। जब वे दोनों आकाश से भूमिपर गिरने लगते, तब फिर बाण मारकर लव-कुश
इन्हें ऊपर उछाल देते। इस प्रकार गेंद की भांति उछलते-उछलते इन्हें बड़ी
पीड़ा हुई और जब कृपा करके दोनों कुमारों ने इन पर बाण चलाना बन्द कर
दिया,
तब ये पृथ्वी पर गिरकर मूर्च्छित हो गये। कुश ने शत्रुघ्नजी को भी बाण
मारकर मूर्च्छित कर दिया। महावीर सुरथ कुश के बाणों के आघात से भूमि पर
पड़
गये और वानरराज सुग्रीव को कुश ने वरुणपाश से बाँध लिया। इस प्रकार कुश
ने
युद्धभूमि में विजय प्राप्त की।
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